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[ व्यक्ति एक महत्वपूर्ण इकाई है । समस्त दायित्वो का बोध उसमे हो प्रतिफलित होकर उभरता है । प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक व्यवस्था मे व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण है । वह अपने दायित्वो का निर्वाह अथवा मूल्याकन तभी कर सकता है, जब उसका जीवन नैतिकता की परिधि मे आबद्ध हो । नैतिक मूल्यो का बन्धन उसके लिए अनिवार्य है । नैतिक मूल्य समाप्त हो जाने के बाद, व्यक्ति स्वय समाप्त हो जाता है । इस प्रकार से व्यक्ति का अवमूल्यन होते ही समाज एव राष्ट्र भी उससे प्रभावित हुए बिना नही रहता । क्योकि व्यक्तियो का समूह ही तो समाज अथवा राष्ट्र का रूप ग्रहण करता है । इनका अपने आप मे स्वतंत्र रूप से कुछ भी तो अस्तित्व नही । समाज एव राष्ट्र व्यक्ति का विराट् रूप मात्र है । समाज का स्वरूप व्यक्ति ही निश्चित करता है । व्यक्ति के नैतिक मूल्यो की रक्षा तभी सभव है, जब व्यक्ति अपने स्वभाव, देश और परम्परा के अनुरूप अपने धर्मं का पालन करे ।
चिन्तन-कण | ३३