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अन्य ग्रहो अथवा दूसरे लोको पर विजय पताका फहराने
मानव नए
की धुन में मानव को अपनी यह पृथ्वी नही भुला देनी चाहिए । इस पार्थिव मानव के लिए वस्तुत उसकी अपनी पृथ्वी ही सबसे अधिक उपयोगी है, सुखद और प्रिय है । अभी पृथ्वी पर ही इतनी व्यथा एव दुख है कि उससे उसको मुक्ति देने के लिए घोर प्रयास करना आवश्यक है । ऐसा न हो कि क्षितिजों की ओर निहारने मे इतना व्यस्त मस्त हो जाए कि अपने घर को ही भूल जाए, उसके प्रति अपने कर्तव्य से ही मुँह फेर बैठे मानव अन्तरिक्ष की कितनी ही लम्बी यात्रा क्यो न कर आए, जो आनन्द, जो प्यार, जो आत्म-सुख उसे पृथ्वी पर मिलता है, वह अन्यत्र कही पर भी नही मिल पाता ।
चिन्तन-कण | १५