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[ मानव का जीवन तीन धाराओ मे से होकर गुजरता है ।
अथवा यो कह लीजिए कि मनुष्य जीवन तीन अवस्थाओ मे विभक्त किया जाता रहा है। वे तीन अवस्थाएँ हैं बचपन, योवन और वृद्धत्व । इन तीनो अवस्थाओ का समन्वित रूप ही जीवन है । मनुष्य के जीवन मे वाल्यकालीन ताजगी, स्फूर्ति एव स्वच्छ हृदयता, यौवन कालीन उत्साह, उमग, शक्ति एव क्षमता तथा वृद्धावस्था कालीन अनुभव, वैचारिक प्रौढता, गम्भीरता और दायित्ववहन की भावना इसप्रकार इन तीनो स्थितियों का सगम होना ही जीवन की त्रिवेणी है । जो गति, स्फूर्ति और गाम्भीर्य की प्रतीक है । इस प्रकार की गुणात्मक एकवद्धता जीवन के उन्नयन, उत्कर्ष तथा प्रगति की द्योतक है । एक ही जीवन मे इन सबका यथोचित रूप से घटित हो जाना उसकी दिव्यता और महानता है |
१०० | चिन्तन-कण