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.. मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ ४७ रमतां हुवा । तरै कमालदी रावळ मूळराजनूं अोळखियो' । तरै कमालदी रावळनूं कह्यो-“थे अठै सासता रमणनूं पाया करो । अठै आवतां-जावतां थाने बुरो चाहसी नहीं । तिण वातमें खुदाय विचै छै ।" तठासू रावळ रमण सासतो आवै । सु कितराहेक दिन हुवा । तरै पा वात पातसाहजी सांभळी', सु पातसाहरै कपूरो मरहठो पंच-हजारी उमराव थो, तिण पातसाहनूं मालम कियो-"मूळराज कमालदी सोगटै रमै छै। गोठिया हुवा रहै छै' । गढ़ ले कुण ? म्हांनूं हजरत निवाजस कर विदा करै तो म्हे गढ़ ल्यां।" तरै पातसाह इणांनू बार-हजारी कर विदा करण लागा । तरै यो कह्यो- हजरत ! एक कोई सिरदार कर मेलो, जिणांरै मुंहडा प्रागै म्हे दोड़ा।" तरै मिलक केसर पातसाहरो भाणेज अर जमाई पण हुँतो तिणनूं13 घणो साथ दे विदा कियो । सु फोज लेनै जेसळमेर नजीक आयो । कमालदी पण साम्हो प्रायो। उणांनूं कह्यो-“गढ घाए लिरीजसी नहीं । गढ सांमो तूटसी जद लिरीजसी । थे गढ घेर बैसज्यो।" सु अ मांनै नहीं । तरै कमालदी कह्यो-'थे मोनूं लिखद्यो । सु कमालदी कह्यो घणोही, पिण इणां मानियो नहीं ।" तरै कमालदीनूं रुक्को कर दियो । कमालदी उतरियो । उणै गढनूं चलाया । तरै कमालदी मूळराजनूं कहाड़ियो” जु-“मांहरी रोजी मनै व्है छै18 । देखां थे किसड़ी वेढ करो छो ।” तरै मूळराज रतनसी साथ कह्यो जु"तुरकानुं गढ लगाव दो, कांगुरै हाथ घाततां तांई कोई तीर गोळी मत चलावो । सु गढरोहो व्है छै 1, नीसरणियां लागै छै, गढरै ठठ
I पहिचाना। 2 निरन्तर । 3 यहां आते-जाते रहनेमें तुम्हारा कोई अहित नहीं चाहेगा। 4 इस बातके लिये खुदा बीचमें है। 5 उस दिनसे । 6 यह बात बादशाहने सुनी। 7 परस्पर मित्र हुए रहते हैं। 8 गढको कौन फतह करे ? 9 हजरत, हमें कृपा कर भेज दें • तो हम गढ फतह करें। 10 बारह हजारी मनसब । II जिसके आगे हम सेवा बजावें। 12 था। 13 उसको । 14 उनको कहा- केवल लड़ाई करनेसे गढ़ नहीं लिया जा सकेगा। 15 सामनेसे गढ़ टूटेगा तब लिया जा सकेगा। 16 तव कमालुद्दीनने कहा--तुम मुझे लिख कर दो। कमालुद्दीनने बहुत कहा, परन्तु इन्होंने नहीं माना। 17 कहलवाया। 18 मेरी रोजी मारी जा रही है। 19 कैसी । 20 लड़ाई। 21 सो गढ़का घेरा लग रहा है।