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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३४१ ऊठे, बैसे महिल हूं बारै जावै, फेर मांहि ग्रावै । ताहरां रांणी पूछियो- 'दीवांणजी ! आज कासूं छे ? दीवांण किणहीसौं चूक कियो छे ?" कह्यो - 'हवे । ताहरां रांणी बोली- देखिया ! हराम - खोरांरै कहै कोई रिणमलसूं चूक करता हुवो ? ' * ताहरां बोलिया म्हां तो रिणमल मरायो ।" रांणी बोली- 'कासं कियो ?" थांरै बाप वैर लियो, थांनू टीको दियो, थांरी धरती वसाई, तैरै वासतै थे मरावी ? थांसूं रिणमल कासूं वुरो कियो छे ?" ताहरां दीवांण छोकरी मेल्ही - 'जायने महिपैनं तेड़ि ल्याव । फुरमायो सु मतां करो ।" ताहरां छोकरी जायने कह्यो - 'महपाजी ! थांनूं दीवाण कांम फुरमायो छै सु हिवडां मत करो। " थांनूं दीवाण बुलावै छै ।'' ताहरां जांणियो- 'रिणमल जीवियो तो म्हे मरस्यां ' 12 ताहरां छोकरीनं माळा दीन्ही र कहियो - ' तूं कहे, कांम थां मासुको । छोकरी पाछी फिरी । श्रायनै रांणनूं कह्यो । ' कहियो - 'थांनूं कांम 113 ईंयां जायन रिणमलजी पोढिया हुतांनूं घाव कियो ।" ताहरां कटारीसूं एक रजपूत पोढियां ही मारियो । एक लोटै मारियो । 8 रातको कुंभा सोता हुआ कभी उठता है, कभी बैठता है, कभी महलके बाहर जाता है और फिर भीतर आता है। 2 दीवानजी ! आज क्या बात है ? किसीको दगा कर के मारनेका विचार किया है क्या ? 3 हां । 4 देखना ! कहीं हरामखोरोंके कहने से -रिमल के साथ चूक तो नहीं कर रहे हो ? 5 हमने तो रिणमलको मरवा दिया । 16 रानीने कहा - 'यह श्रापने क्या किया ? 7 उसने तुम्हारे बापको मारनेके बैरका बदला लिया, तुम्हारा राज्य- तिलक किया और तुम्हारे देशको फिरसे बसाया -- इसीलिए तुम उसे मरवा रहे हो ? तुम्हारे साथ रिगमलने कौनसा बुरा किया है ?' 8 तब दीवानने दासीको भेजा कि जाकर महिपेको बुला ले आ । 9 कहलवाया कि तुम्हें जिस कामके करनेके लिए आज्ञा दी गई है, वह मत करना | 10 / 11 तब दासीने जाकर कहा -- 'महिपाजी ! तुमको जिस कामको करनेकी दीवानने प्राज्ञा दी है उसे अभी तक मत करो। तुमको दीवान बुला रहे हैं । 32 तब उसने सोचा- 'यदि अब रिमल जिन्दा रह गया तो हम मारे जायेंगे । '13 तव दासीको एक माला दे कर कहा--'तू यह कह देना कि जो काम आपने फरमाया था सो कर दिया गया है । 14 इन्होंने जाकरके सोते हुए रिणमल पर प्रहार किया । [ ऐसा कहा जाता है कि राव रिणमल नींद में सोया हुआ था । षड़यंत्रकारियोंने उसे लंवे वस्त्रसे खाट सहित लपेट कर खाट के साथ बांध दिया, जिससे वह उठ कर उनका मुकाबला न कर सके । परन्तु रिणमलने ग्राहत अवस्थामें भी खाट सहित उठ कर उन लोगोंको मार दिया। उसके बाद उसका भी प्रारणांत हो गया ।] 1
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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