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________________ .. मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३२३ हुता सु जांनां प्रावती छी'। सु हेकै 'थळी हेठ गोगादेजी पण उतर बैठो' । लोकां केही दीठा, “सु जांणियो जान छ । पछै बारसरै दिन परभातै मोहिला ऊपर आया । वेढ हुई । सिरदार मोहिलांरो नीसर गयो । और सरब मार काढिया । गांव लूंटियो । कोहर ऊपर खेजड़ो छै; सु ऊठ आया । पछै तैनूं बगल माहै ले ऊभा रह्या । ऊ खेजड़ो मरदरी ताल समो छ । गोगादेजी इतरै डील हुंता' । पछै जांनां सतावीसै लूट लीवी । रजपूतरो वैर ले पधारिया ! इति वात गोगादेजीरी संपूर्ण । . ___ I उस दिन उस गांवमें राजपूत, जाट और वनियोंके २७ विवाह थे, अतः वाहिरसे बारातें आ रही थीं। 2 सो (उस गांवके पास) एक टीवेके नीचे गोगाजीने भी अपना पड़ाव - डाल दिया। 3 कई लोगोंने देखा तो समझा कि कोई वारात है। 4 फिर द्वादशीके दिन प्रभात मोहिलों पर चढ़ करके पाये और लड़ाई हुई। 5 मोहिलोंका सरदार मारणकराव ... भाग निकला। 6 और दूसरे सबको मार डाला। 7 उस कूएंके ऊपर एक शमी-वृक्ष है, वहां पर आये। 8 उस वृक्षको बगलके नीचे दे कर खड़े रहे। 9 वह खेजड़ा-वृक्ष पुरुषके ताल समान परिमारण जितना ऊंचा है। ताल = पुरुपका खड़ा हो कर अपरको हाथ उठाये हुए-एड़ीसे हाथकी अंगुलियों तकका एक मान । 10 गोगादेजीका शरीर इतना ऊंचा था। II फिर २७ बारातोंको भी लूट लिया। 12 अपने राजपूत के वैरका बदला लेकर गोगादेजी लौटे।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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