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________________ २६० ] . मुंहता नैणसीरी ख्यात ताहरां जगमाल हेमैसूं रीसांणा' । दिन ५ तथा ७ प्राडा घातिनं एक दिन जगमाल कह्योहेमाजी ! घोड़ो थे मोनूं द्यो, थे मो कना बीजो घोड़ो ल्यो । 'कह्यो जी-म्हां कनै घोड़ा, रजपूत छै सु थाहरा हीज छै। थांहरै .. कांमनूं ही छै ।' कह्यो-'थां माहरै कामनूं तो छो, पण घोड़ो मोनूं ... द्यो।' ताहरां हेमो कहै-'राज ! घोड़ो न छु ।' तो कह्यो-'थे मांहरा चाकर नहीं ।' ताहरां हेमै कह्यो-'नहीं तो नहीं । हेमै वास छोड़ियो। हेमो जाय घूघरोटरै पहाड़ां पैठो। हिवै हेमो मेवासी हुवो । महेवैरी धरती उजाड़े । सातवीसी गांव महेवैरा ... मांहि धुंवो धुखै नहीं। इसो जोर घालियो के के जाळोररी मांहै. वसिया, के जेसळमेररी मांहै वसिया । रईयत सरव गई। धरती हेमा अागे वस सगै नहीं। कितराहेक वरस युही धोंकळ रह्यो । हिवै रावळ मालोजी कुटेवा पड़िया । युं करतां घट घणो वेचांक .. हुवो । ताहरां दान पुण्य कियो । जाहरां मालोजी अंतकाळ पाया । ताहरां वेटा, पोतरा, भाई सरव उमराव एकठा हुवा छ । ताहरां ... मालोजी वोलिया-'इतरा दिन तो हेमै देस मारियो । हिवै हूं घरै न हुवो, ताहरां हेमो महेवैरै किंवाड़े घाव करसी। प्रोळं प्राय: ठाहोकसी। इसड़ो कोई रजपूत छै जु हेमरी पूठ राखै ?' .... वार २-३ रावल मालैजी कह्यो, पण कोई वोलै नहीं। ताहरां कुंभो जगमालोत वोलियो-'ठाकुरे ! वोलो काई नहीं। खेड़रा ऊपना I तब जगमाल हेमेसे नाराज हो गया। 2 अपना घोड़ा मुझे दो और मेरे पाससे . . दूसरा घोड़ा ले लो। 3 तुम्हारे कामके लिये ही है। 4 राजकुमार ! घोड़ा नहीं दूंगा।" 5 नहीं तो नहीं सही। 6 अव हेमा लुटेरा हो गया। 7 महेवेके १४० गांवोंमें धुआँ नहीं निकलता है । अर्थात् सभी घर खाली हो गये। 8 ऐसा अातंक जमाया सो भयके मारे... . कई जालोर प्रान्तमें और कई जैसलमेर प्रान्तमें जाकर बस गये। 9. हेमाके आतंकने देश पावाद नहीं हो सकता। 10 कितनेक वर्षों तक यह उपद्रव योंही चलता रहा। II. अब . . रावल मालाजी रोगग्रस्त हुए। 12 इस प्रकार रोग-निवृत्त नहीं होनेसे शरीर अधिक अस्त्रस्य हो गया। 13 इतने दिन तो हेमेने देशको लूटा । 14 अव ज्योंही मैंने कूच किया नहीं; त्योंही हेमा महेवेके दर्वाजे पर आकर घाव करेगा। 15 पौलि पर पाकर छापा मारेगा। ... : .. 16 ऐसा कोई राजपूत है जो हमेका पीछा करे। ............ . . . . . . .
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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