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मुंहता नैणसीरी ख्यात पदमसी लोभायै थक जाइनै त्रिभुवणसीनूं पाटां मांद सोमल नींव .. माहै भेळियो । पार्टी मांह विस हुवो । त्रिभुवणसी देवगत हुवो। ... पदमसी माले कनै पायो। कह्यो- मोनू टीको घो।' माल को'टीको यु नहीं आवै ।' कह्यो-'जी, दोय गांम ल्यो, वीठा खावो'।' ताहरां पदमसीनू दोय गांव महेवैरा दे विदा कियो ।
रावल मालोजोरी* बात हिवै रावळ मालोजी महूर्त जोबाडिनै महेवें पायो । आयनै महेनै टीकै बैठो। सरव रजपूत आय मिळिया। धरतीमें प्राण सगळे फेराई । सरव भूमिया साझिया । ठाकुराई बधी। भाई सरव आय मिळिया। धरती मांद मालैरी धाक पडण लागी । वीजो भाई जैतमाल, तिगनू सिवांणो दियो । जैतमाल सिवांण राज करै छै. पण मालेरौ चाकर हुवो रहै । वीरम सोभत औ पण महेनर पास ...
__I तव पदमसीने लालचमें आकर और वहां जाकर नीमके पट्टोंमें सोमल विप मिला : ... दिया। 2 पट्टोंमें जहर होगया। 3 त्रिभुवनसी मर गया। 4 पास। 5 दो गांव लेलो और बैठे खायो। 6 अब मालाजी मुहूर्त दिखा कर महेवे पाया। 7 देश में सर्वत्र अपनी आन-दुहाई फिरवाई। 8 समस्त भोमियोंको अपने अधिकार में किया । 9 देशमें मालाकी ... घाक जमने लगी। 10 दूसरा भाई जैतमाल, उसको सिवाना दिया।
*'माला' रावल मल्लिनाथका साहित्यिक नाम है। जैसाकि 'तेरह तूंगा भांजिया माल सलखांणी' सलखाके पुत्र मल्लिनाथने बादशाही सेनाके तेरह दलोंका नाश कर दिया। लोकमान्यता है कि इनकी रानी रूपांदेकी अडिग भक्ति और चमत्कारों से प्रभावित होकर रावल .. मल्लिनाथ भी उस ओर प्रवर्त होगये। निरंतर भक्तिमें तल्लीन रहने के कारण इन्हें वचन- .... सिद्धि प्राप्त थी। लूनी नदीके किनारे तिलवाड़ा ग्रामके सामने तिलवाड़ा-फेचर नामक रेलवे स्टेशनके पास थान गांवमें रावल मल्लिनाथका बड़ा मंदिर बना हुआ है । रूपांदे रानीका मंदिर भी कुछ दूरी पर मालाजाल गांवमें बना हुआ है । रावल मल्लिनाथकी स्मृतिमें थान और तिलवाड़ाके वीच लूनी नदीके पाटमें प्रत्येक वर्ष चैत्र कृ० ११से चैत्र शु० ११ तक एक बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों रुपयोंके मूल्यके ऊंट, घोड़े, वैल आदि पशुओंका और वस्त्र प्रादि । अन्य व्यापारिक वस्तुओंका क्रय-विक्रय होता है। कहा जाता है कि साधु-सन्यासी और भक्तजनोंके वार्पिक धार्मिक सत्संगका रूपान्तर यह मेला है ।