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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ २३५ - सूळा कर खवाड़ता, तिकै खवाडै । बीजो क्युं खावू नहीं। पर्छ
सूळांरी कांब ४ वणायनै मेली। कयो-"जावो सोढीनू दो।" तरै ले जाय दी। सोढी देखनै कह्यो--"प्रै कांब तो लाखाजीरी वणाई न हुवै ।" पछै आप कांब ४ हाथसू वणाई । एकण कपड़े लपेटनै मेली। सोढी वे कांब देखी । औ कांब लाखाजीरै हाथरी वणाई हुवै । वे कांब हाथमें लेत सवां जीव उड गयो । लाखानू कहो--"जी सोढी मुंई।" तरै च्यार रजपूतांनू मेलिया नै कह्यो-"क्युंहेक अगर चंदण ले जावो, सोढीनूं वाळ प्रावो ।"
I लाखाजी अपने हाथसे शूले (शूल्य-मांस) बना कर मुझे एकान्तमें खिलाते थे सो .. खिलाएँ। 2 ये शलाकाएँ तो लाखाजी की बनाई हुई नहीं हो सकतीं। 3 उन शलाकानोंको
हाथमें लेते ही प्राण उड़ गये। 4 भेजे। 5 कुछेक । 6 सोढीको जला प्रायो।