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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [२११ हुवो।" सुवचन कहतां सँवी अांबांरी प्रांबली हुई', सु ांबली अजेस छै । प्रांबांरो अांबली करनै बीजे. दिन एक चेलो पासणरी ठोड़ ....गाडियो, नै बदवा दीनी; कह्यो-“मांहरी ठोड़ उपाड़ी छ, त्यौं नाथ ... करै तो थांहरी ठोड़ उपड़ज्यो ।" लाखड़ी था कोस १२ धीणोद छै, .... तधूंधळीमल धीणोदरै भाखर अजेस रहै छै', सु गरीबनाथ उठै गयो । तठा पछै दिनां १० तथा १२ धीरणोदरा भाखरसूं धूंधळीमल गरीबनाथ उतरै छै । वरसातरा दिन छ । सु प्रागै रायवण बाप हमीर नै बेटो भीम हळ खड़े छै, सु भींव सूड़ करै छै । तिणे दीठो, भींव ! "श्रो तो गरीबनाथ गाडियो थो सु व्है ।" तरै भीम सांमो जाय पगे लागो। आपरो डेरो नींबड़ी हुतो, तठै साथै तेड़नै ल्यायो' । तितरै घरसूं भातो आयो, तरै भातो पत्तर माहै पुरसनै आप मांखी राखण लागो । तरै पत्तर मांहैं जीमतां थकां धुंधळीमल बचको १ खीचरो भर. भीमनूं दियो । कह्यो-"तूं जीम ।” कह्यो-'हां बाबाजी ! जीमं ।" भींव तो अँठो जांण टाळो करै13। नाथ वार दोय तीन - ... कह्यो। तरै आपरी मा कनै बीजो खीच पुरसायो । गुर दियो थो सु खीच पाखती15 राखै, बीजो खीच जीमै । तरै गुर दीठो” "प्रो खीचरो टाळो करै ।” तरै गुर भीमरी थाळी मांहैसू उरो लियो', .. ___I सो वचन कहने के साथ ही उन प्रामके वृक्षोंकी इमलियाँ हो गई। 2 वे इमलियाँ अभी तक हैं। 3 दूसरे । 4/5 और श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने हमारे स्थानको छुड़ाया है उसी प्रकार (गुरु गोरख) नाथजी करें तो तुम्हारा स्थान भी तुमसे छूट जाये । 6 लाखड़ीसे । 7 वहां धुंधलीमल धीणोदके पहाड़में अभी तक रहता है। 8 सो आगे रायधण-जाड़ेचा हमीर और भीम, बाप-बेटा दोनों खेतमें हल चला रहे हैं। भीम सूड़ कर रहा है। (सूड करणो = नाज बोने के पहले खेतमें उगे हुए घास और झाड़ आदि को काट करके खेतको बोने योग्य बनाना ।) 9 उन्होंने देखा और हमीरने कहा-'भीम ! यह तो वही गरीबनाथ हो जिसने जीवित समाधि ले ली थी। 10 अपना डेरा जिस नीम वृक्षके नीचे था, वहां पर अपने साथमें बुला लाया। II इतनेमें घरसे भात। प्रा गया, तब नाथजीके भोजनके लिये पात्रमें परोस कर खुद मक्खियाँ उड़ाने लगा। (भातो = घरसे दूर काम करने वाले कृषक, मजदूर आदिके भोजन करनेके लिये घरसे लाई हुई रोटी आदि रंधी हुई भोजन-सामग्री ।) 12 तव भोजन करते हुए धूधलीमलने पात्रमेंसे एक लौंदा खीचका भर करके भीमको दिया। 13 भीम जूठन समझ कर टालता रहा। 14 तब अपनी मांसे खीच परोसाया। 15 पासमें। 16 दूसरा। 17 तव गुरुने देखा। 18 ले लिया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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