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मुंहता नैणसीरो ख्यात भांण नै रा ॥ वेणीदास पूरणमलोतरै फोजदार थको थो' । पछै कान्हीदासरै लोगै खोडो काढियो, तिण दिनसू राजाजी रीसांणा । पछै राजाजी देस पधारिया, तद दरबार बैठां मैहदली कना कहाड़ियो-~-झै बेऊ ठाकुर आवै तरै गुदरावै- 'वेणीबाई नै भाणीवाई जुहार करै छै ।" पछै अं बेऊ ठाकुर छाडनै किसनसिंघजीरै वसिया । पछै सं० १६७७ वळे पाछा आणन भांण कुहड़ गांवां ३ सूं दीवी । । संमत १६७८ जोधपुर सिकदार।
१० नरसिंघ भांणोत । संमत १६७७ कुहड़ पटै । सं० १६७२ सीवळतो, कपूरियो पटै दिया था।
११ हररांम। ११ सिवदास । ११ भींव । ८ रांणो रायपाळोत ।
६ पतो रांणावत । माधोसिंघ कछवाहेरो चाकर। अजमेर में काम आयो।
१० सूजो पतावत । संमत १६७२ गांव ५सू भांडोळाव पटै । सं० १६७३ गागडांणो मेड़तारो पटै । सं० १६७८ गजसिंघपुरो पटै । सं० १६५७ वीझवाडियो गांव ४ सू पटै । ११ लूणो सूजावत । ११ कांन्ह सूजावत ।
६ ईसरदास रांणावत । राणाजीरै वास । पुररो परगनो पटै'। १० आईदांन ईसरदासोत । राणाजीरै वास ।
ह रायमत राणावत । १० पंचाइण ।
___ I सम्वत् १६६१में छोड़ दिया तब मेड़तेमें भाग और राजा वेणीदास पूरणमलोतके यहां फौजदारकी नौकरी में था। 2 पीछे कान्हीदासके लोगोंने मुसलमानी डाढ़ी(?)बनवाई उस दिनसे राजाजी नाराज हो गये। 3 फिर राजाजी जब देशमें पधारे तो दरवारमें बैठे ही महदअलीसे बाहलवाया कि जब ये दोनों ठाकुर आवें तब गुजारिश की जावे कि 'वेणीबाई और भाणीवाई जुहार कर रही हैं ।' 4 फिर ये दोनों ठाकुर छोड़ कर के किशनसिंहजीके यहां बस गये। 5 पीछे सम्वत् १६७७ फिर वापिस बुला कर भाणको तीन गांवोंके साथ कुहड़ गांव पट्टेमें दिया। 6 सम्वत् १६७८में जोधपुरमें सिकदार नियुक्त हुप्रा । 7 राणाजीके यहां चाकरी और पुर परगना पट्टेमें ।