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मुंहता नैणसीरी ख्यात
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खरड़री पोकरण थी' कोस १६, फळोधीसूं कोस ८, उठाथी लेने वीठणोक सूधी इण धरती मांगी। रावळ घड़सी इतरी " धरती जैतुंगन दीवी हुती । वीठणोक वीकानेरसूं कोस सतरे १७ छ । जोगीरा तळाव, देवाइतरा तळावसूं कोस ४ तथा ५ वीठणोक छै, तठा सूधी धरती जैतुंगरै रावळ घड़सीरी दीवी हुती ; सो विकूंपुर को 'दिन' जैतुंगरही रह्यो । तठा पछै पूगळ ऊपर मुलतानरी फोज श्राई; तिण पूगळ लियो । पछै वा फोज विकूंपुर श्राई, तरै जैतुंग कल्हैरै मरने विकूंपुर कोट दियो । गढ तुरके लियो । के दिन गढ तुरकां रह्यो' । तुरकै गढ मांहै मसीत १ कराई छै । नै साह वीदा मुल - तांणरा वासीरो करायो कोट मांहै देहरो १ ज्यांनरो छै' । पछै तुरकांनूं खांण-पांणनूं जुड़े क्यूं नहीं ", तरै तुरक कोट विकूंपुर छोड़ परा गया ; सुविकूंपुर सूनो पड़ियो थो । मांहै घणा झाड़ ऊगा था 11, तिण सम रावळ केल्हण खाली ठोड़ देखने आसणीकोटसूं विकूंपुर आयो, नै ठे रह्यो । कोट महिला झाड़ - भंगी " बाळ दिया; तिके प्रजेस बलिया ठूंठ दीसै छै । गढ रावळ केल्हण सझियो । विकंपुर ऊंचो थांबमाथैरो छै'छ । प्रोळ सखरी " छै । घर १ मांहै सखरो छै । देहरो १ एक साह वीदारो करायो सखरो छै । भींत तो गढरी पाखती इसी
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सी ही छै" । कोहर १ किडांणो प्रोळरी भींत हेठे छे, पांणी खारो छै, पुरसे ४० | दोळो पांणी कोस ५ तथा ७ छै, नेड़ो कठै ही न छै ' " ।
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I से । 2 वहांसे लेकर 1 3 तक । 4 इतनी । 5 वहां तक रावल घड़सीकी दो हुई भूमि जयतुंगके पास थी । 6 कई दिन । 7 कई दिन गढ़ मुसलमानों के अधिकारमें रहा। 8 मस्जिद । 9 मुलतान निवासी शाह वीदाका बनवाया हुआ एक जैन मंदिर भी कोटमें है । 10 वहां जब तुर्कोंको खाने-पीनेको कुछ नहीं मिला । 11 भीतर बहुत वृक्ष उगे हुए थे । 12 वृक्षोंकी झाड़ी । 13 अभी तक जले हुए ठूंठ दिखाई देते हैं । 14 रावल कल्हणने गढ़को तैयार करवाया । TS विकूंपुरका गढ़ स्तम्भकी भांति ऊंचा उठा हुआ है। 16 अच्छी | 17 गढ़के पार्श्वकी भींत तो ऐसी-ऐसी (साधारण) ही है । 18 किडारणो नामक एक कुंद्रा पौलकी भींत के नीचे है, जिसका पानी खारा है और वह ४० पुरुष गहरा है । (पुरुष वा पुरसा = खड़े होकर हाथ ऊंचे उठाने या दायें-बायें हाथ फैलाने के वरावरकी, अथवा १२० अंगुली गहराई नापने की एक माप ) । 19 आजू-बाजू ५ या ७ कोस पर पानी हाथ आता है, निकट कहीं नहीं है ।
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