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[ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर वार । इंदं पुस्तकं समाप्तं । दसकत भट्ट शामसुदरका । रणजीत तत्सुत वलदेव पठनार्थ ।। यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोपो न दीयते ॥रामः।। ३५५. ५३८६ __रामायण, युद्धकांड श्रादि- (प्रारंभिक पत्र प्राप्त)
मनोहर कवि कलानिधि रच्यो ।।
तहां जुद्धकांडहिं नारदागम सर्ग वत्तीसौं सच्यो ।। ३२ अन्त- व्रज चक्रवति कुमार गुनगन गहिर सागर गाजई ।
श्री रामचरन सरोज अलि परतापसिंघ विराजई । तिहि त रामायन मनोहर कवि कलानिधिनै रच्यो ।
तहं जुद्ध कांडहिं सतरू चौंतीस ग्रंथ फल वर्णन सच्यौ ।। १३४ लिख्यते लेषक रामसेवग लिखायतं ठाकुरजी श्रीमेदसिंहजी तस्य पुत्र पृथ्वीसिंह आत्मपठनार्थ संवत १८३७ शाके १७०२ प्रवर्तमाने मासोतम मासे उत्यम मासे अश्वेन........ ३६५. ४६२३ (१)
रूपमंजरी आदि- श्रीगणेशाय नमः । अथ रूपमंजरी नंद कृत लिप्यते । दोहा- प्रथम हि प्ररणऊ प्रेममय, परम जोति जो पाहि ।
___ रूप उपावन रूपनिधि, नित्य कहत कवि जाहि ॥ १ . अन्तदोहा- जदपि अगमते अगम अति, निगम कहति हैं जाहि ।
तदपि रंगीले पेमते, निपट निकट प्रभु याहि ॥ ११७ इति श्री नंददास कृत रसमंजरी ग्रंथ संपूर्ण समाप्तं ॥ श्रीरस्तु ।। शुभमस्तु । सम्वत् . १७२६ चैत्र वदि तृतीया वुधवारे मोकाम रंगामाटी सबलसिंघ कुवरस्य पठनार्थ रसमंजरी ग्रथं मुरलीधर मिश्रेणमलेखि ॥ ३७४. ६०१६
व्रतकथाकोश. आदि- ॥ ० ॐ नमः ।। अथ श्री व्रतकथा कोश भाखा लिष्यते । चौपई- आदिनाथ वंदू जिनरा [य] । कर्म कलंक रहित सुपदाय ।
धनुष पंच से जाको काय । वृषव लछ्य सोभै अधिकाय ॥ १ अन्तछप्पै- श्री जिनंद गुण धाम जास वच सुरिण चित धरिये।
श्रावकको आचार पालि कर्मनिसौं लरिये ।। दान सील तप भाव च्यारि वृप मुल विचारौ । और सकल परिहारि चहू उत्तम उरि धारो सुरगादि थान दाइक महा क्रमते सिवपदको कराहि ।
ताते पुस्याल अनिको अवै इनि विनि मनमें किम धरहि ।। २१ :: : इति श्रीसूरिश्रुतसागर कृत व्रतकथकोशके अनुसारि भाषा श्रीपल्य विधानकी