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________________ सञ्चालकीय वक्तव्य हमारे देश मे बहुत प्राचीन काल ही से लेखन की प्रथा रही है जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन अनेकों ग्रन्थ-भण्डारों की विद्यमानता ज्ञात होती है। हजारों ही देवमन्दिरों, आश्रमों, गुरुकुलों और विद्यापीठों मे विद्वानों एव सरस्वती पुत्रों द्वारा साहित्य - निर्माण के साथ ही प्रतिलिपि का कार्य भी बड़े पैमाने पर होता था और इस प्रकार ग्रन्थ-भण्डारों की सुरक्षा के साथ ही उनकी श्रीवृद्धि भी होती थी । प्राचीन काल मे पुस्तकालय की सुरक्षा और सवृद्धि करना विद्यापीठ का ही नहीं वरन् देश के प्रत्येक सस्कारी परिवार का भी पवित्र कर्तव्य समझा जाता था । खेद है कि कालान्तर मे हुए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनैतिक विप्लवों तथा विदेशियों के दुर्दान्त आक्रमणों मे हमारे देश के पुस्तक भण्डार नष्ट - भ्रष्ट हो गये । अब हमें अपने प्राचीन ग्रन्थभण्डारों की यत्र-तत्र प्राप्त कुछ ग्रन्थों की प्रतिलिपियों और तिब्बत, नेपाल, चीन आदि देशो प्राप्त कतिपय ग्रन्थों के कुछ भाषानुवादों से ही सन्तोष करना पड़ता है । राजस्थान प्राचीनकाल से ही हमारे देश का एक सुसांस्कृतिक भाग रहा है और इसलिये यहा बहुत प्राचीनकाल से ही अनेक छोटे-बडे पुस्तक भण्डारों की स्थिति ज्ञात होती है । राजस्थान मे हजारों ही विद्वान् ब्राह्मणों, जैनसाधुओं, यतियों, श्रीमन्तों और शासकों ने प्रचुर धन व्यय कर परिश्रम पूर्वक निजी ग्रन्थ-२ - भण्डारों की चित्तोड़, आघाटपुर (आयड़, उदयपुर), भिन्नमाल, जालोर, अजमेर, बाड़मेर, नागौर, बैराठ आदि स्थानों मे स्थापना की । ऐसे श्रादर्श प्रथ भण्डारों का सामान्य परिचय अब केवल जैसलमेर के जैनमन्दिरों मे भूगर्भस्थित पुस्तक भण्डार से ही प्राप्त किया जा सकता है। 1 हम इस विद्या राशि के स्थानान्तरण और विनाश का क्रम पिछली कई शताब्दियों से चालू रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों ही हस्तलिखित ग्रन्थ अज्ञानियों के हाथों मे पड़ कर नष्ट हो गये, दीमकों और चूहों के ग्रास बनगये तथा बम्बई, पाटन, बड़ौदा, कलकत्ता आदि से भी आगे सात समुद्र पार विदेशों मे पहुँच गये। किसी न किसी रूप मे यह क्रम हमारी उपेक्षा के कारण आज भी चल रहा है जिसको देखते हुए अत्यन्त दुख होता है । हमारी जानकारी मे आज भी केवल राजस्थान मे छोटे-बड़े कम से कम ५०० ग्रन्थ भण्डार हैं जिनकी सुरक्षा और उपयोग का कोई विशेष प्रबन्ध नहीं है । राजस्थान - सरकार ने हमारे सुझाव के अनुसार " राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर” स्थापित कर इसके सचालन का कार्य - भार हमे सौंपा तो हमने अपने विशेष प्रयत्न से एक ग्रन्थ-भण्डार की आयोजना की । अब तक इस ग्रन्थ भण्डार में काव्य, इतिहास, पुराण, कोश, व्याकरण, दर्शन, आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड, योग, ज्योतिप, गणित, संगीत, नृत्य, कामशास्त्र, रास, कथा, रस, अलकारादि विपयों के और संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती, ब्रज, खड़ी बोली आदि भाषाओं में लिखित लगभग १३,५०० ग्रन्थ सगृहीत और सुरक्षित किये जा चुके हैं। देश
SR No.010607
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size12 MB
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