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व्यक्तित्व और कृतित्व
यात्रा भी कर चुके हैं । नागार्जुन जी संस्कृत, प्राकृत और पाली भापा के प्रौड़ विद्वान हैं।
- वनारस की बात है । सुशील मुनि जी कलकत्ता से वनारस पाए और कवि जी कानपुर से बनारस । सारनाथ में कवि जी और सुशील मुनि जी से भिक्षु जगदीश काश्यप मिले । काश्यप जी आजकल पिटकों का सम्पादन और प्रकाशन कर रहे हैं । पाली सहित्य के आप गम्भीर विद्वान् हैं और प्रसिद्ध लेखक भी। काश्यप जी कवि जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए थे । कवि जी की उदार दृष्टि सर्वत्र व्याप्त है। राष्ट्र नेताओं से मिलन :
सन् पैंतालीस में कवि जी महाराज दिल्ली से आगरा आ रहे थे, तब वावू गुलावचन्द जैन के साथ नयी दिल्ली में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी से मिले थे। चालीस मिनट तक कवि जी और गांधी जी में धर्म, समाज और राष्ट्र की समस्या को लेकर वातचीत हुई थी। गांधी जी जैसे महान् थे, वैसे ही विनम्र व्यवहार-चतुर भी थे। बड़े
आदर के साथ नमस्कार करते हुए उन्होंने कवि जी से वार्तालाप प्रारम्भ किया। बातचीत के उस मधुर प्रसंग में गांधी जी ने मुस्करा कर कहा-"मैं भी पक्का जैन हूँ। भगवान् महावीर के अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धान्त का मैं प्रचार कर रहा हूँ।"
कवि जी ने उत्तर में कहा-"जिस व्यक्ति का अहिंसा और अपरिग्रह में पूर्ण विश्वास हो, वह तो अवश्य ही जैन होगा। जिसका आचार पवित्र हो एवं जिसका विचार शुद्ध हो, फिर वह व्यक्ति भले ही किसी भी जाति का और किसी भी देश का क्यों न हो ? वह जैन है।" . कवि जी के उत्तर को सुनकर गांधी जी खूब हँसे और खुश होकर बोले-"आपकी परिभापा ठीक है।"
इस अवसर पर गांधी जी से मिलने को आजाद आए हुए थे। गांधी जी ने मौलाना आजाद को भी कवि जी का परिचय दिया, तो वे वोले-"मैं जानता हूँ, ये जैन सन्त हैं। भगवान् महावीर के त्याग का आदर्श बहुत ऊंचा है, और आश्चर्य है कि आज के ज़माने में भी ये लोग उस पर चल रहे "