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व्यक्तित्व और कृतित्व
विकास यदि कहीं पर हुया है, तो मानव जगत् में ? इस परम सत्य को इतिहास का एक सामान्य छात्र भी भली-भाँति समझ सकता है, कि वनों में वन-फलों पर निर्भर रहने वाले उस प्रागैतिहासिक मनुष्य में, और आज के इस अणु युग के मनुष्य में कितना अन्तर्भेद है ?
___ मनुष्य ने अपने रहने-सहने की पद्धति मात्र ही नहीं बदली, परन्तु उसने अपनी सभ्यता और संस्कृति में भी विशेप विकास किया है। अशन, वसन और भोजन के साधनों के परावर्त को ही मैं विकास नहीं मानता। मेरे विचार में मनुष्य जगत् में सबसे बड़ी क्रान्ति, सबसे बड़ा विकास यह है, कि मनुष्य व्यक्ति से परिवार में, परिवार से समाज में और समाज से राष्ट्र में वदलता रहा और आज के अणु युग से संत्रस्त मनुष्य अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की सुरक्षा के लिए विश्व-परिवार, विश्व-समाज और विश्व-राष्ट्र का सुनहरा का स्वप्न ले रहा है। मनुष्य के मनुष्यत्व के विकास का यही एक प्राशा-पूर्ण पहलू है।
____ मानव-जाति के अब तक के विकास को मैं चार विभागों में विभक्त करके अपने विषय को स्पष्टतर कर लेना चाहता हूँ।
विशाल मानव-जाति के विकास का प्रथम चरण वह है, जिसमें विखरा व्यक्ति, परिवार के रूप में संयुक्त होकर अपने सुख-दुःख को वॉटना सीखा।
मानव के विकास का द्वितीय चरण वह है, जब विखरे परिवार भी मिलकर उठ-बैठने लगे, जंगम से स्थावर, अर्थात् स्थितिशील होकर ग्राम पीर नगरों की रचना की।
मानवीय जीवन के विकास का तृतीय चरण वह है, जिसमें मनुष्य राष्ट्रों के रूप में समवेत होकर सोचने और विचारने लगा। सवल से निर्वल की रक्षा के लिए राजनीति का प्रारम्भ हो गया। राज्य का सर्वोच्च व्यक्ति राजा कहा गया। लोक-मर्यादा के स्थिरीकरण के लिए तथा समाज और देश में व्यवस्था स्थापित करने के लिए राजा को नेता के रूप मे स्वीकृत कर लिया गया। वह अवलों का वल, अनाथों का नाथ और अरक्षितों का रक्षक वना।।