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व्यक्तित्य और कृतित्व
आइए, हम सब एक-दूसरे की समस्याओं का अध्ययन, चिन्तन और मनन करें। विचार-चर्चा से एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझें। एक-दूसरे को सहयोग देने की भावना रखें। हम अन्दर में अपनेआप को मजबूत करें और बाहर में अपने आप को विशाल, विराट और उदात्त करें।"
___- 'जैन प्रकाश' में प्रकाशित शासन कैसा हो?
अपने गम्भीर अध्ययन और व्यापक विन्तन के आधार पर कवि जी महाराज कहते हैं कि-"किसी भी संघ और समाज की सफलता उसके शास्ता के शासन पर अवलम्बित है।" शास्ता यदि विचारशील है, संवेदनशील है, अनुभवी है और देश-काल का जानने वाला है, तो अवश्य ही उसके अनुशासन में चलने वाला संघ एवं समाज विकास के पथ पर अग्रसर होगा ।
श्रमण-संघ में भी एक बार यह सवाल उठाया गया था, कि 'श्रमण-संघ का शासन कैसा हो ? किन हाथों में हो ? मृदु हाथों में अथवा कठोर हाथों में ?' एक वर्ग कहता था-"शासन कठोर एवं कठिन होना चाहिए, जिससे दोष न बढ़ने पाएं।" दूसरा वर्ग कहता था-"अाज का युग कठोर शासन का नहीं है। कटु, कठोर और कठिन शासन को कोई भी मानने को तैयार न होगा। कठोर शासन से कुछ काल के लिए ही कुछ शान्ति हो जाए, परन्तु अन्दर ही अन्दर विद्रोह की आग भी सुलगती रहती है।" एक लम्बे अर्से तक–'श्रमणसंघ में शासन कैसा हो ?' इस विपय पर विवाद चलता रहा। कभीकभी तो वह विवाद काफी जोरदार और काफी गरम भी हो जाता था।
किसी भी समस्या के उलझने पर लोग कवि जी की ओर देखा करते हैं, क्योंकि कवि जी का निर्णय कभी एकांगी नहीं होता। उसके पीछे दीर्घ दृष्टि, गम्भीर विचार और गहरा चिन्तन होता है। वे किसी भी समस्या का हल जव खोजते हैं, तव उनके सामने शास्त्रदृष्टि ही मुख्य रहती है। भले ही उसकी पृष्ठभूमि में इतिहास, दर्शन और मनोविज्ञान भी रहता हो । किसी समस्या पर बहुत शीघ्र