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________________ बहुमुखी कृतित्व ११३ . . . . . . अथवा . . . . . . . यहां कवि अन्तर्मन की आँखें खोलने की तैयारी में है__ "खोल मन ! अव भी आँखें खोल, .. उठा लाभ कुछ मिला हुआ है, जीवन अति अनमोल !" यहाँ कवि का तात्पर्य है कि सांसारिक कार्यों की ओर से रुचि - हटाकर मन की आंखें खोलनी चाहिए, जिससे जीवन में मधु घुल जाए वातावरण आध्यात्मिक हो जाए। ... कवि श्री जी का एक भजन उपयुक्त उदाहरणों में बड़ा सुन्दर बन पड़ा है। वे बार-बार मन को समझा रहे हैं, किन्तु मन मानता क्यों नहीं है, इसकी गति पागल की तरह क्यों हो गई है। बार-बार प्रभु-भजन प्रारम्भ करने पर भी उसमें मन क्यों नहीं लगता है ? . "मनवा! तू नहीं मानत है ! . - पाप-पंक से दिवा:राति मम अन्तर सानत है ।। .. प्रभु-भजन करने को बैठू तू खटपट निज ठानत है। बार-बार समझाया फिर भी हठ अपनी ही तानत है ॥ .... विषय-भोग कटु विष मैं समझू तू मधु अमृत जानत है। 'पागल ज्यों अविराम एक स्वर नित कीति बखानत है। जव लग जग-वन्दन जगपति का नहीं रूप पिछानत है। .तब लग 'अमर' मूढ़ तब सिर पर लख-लख लानत है।" ... प्रस्तुत पद में हमें हिन्दी के प्रोजस्वी कवि कबीर के काव्य की झलक मिलती है, कवि ने बार-बार मन को कहा है कि तू इन सांसारिक वन्धनों में ही मत भटका रह । विषय-भोग तो कटु विष हैं, लेकिन यह पापी मन क्यों इनको मधु-अमृत समझता है । कवि ने यहाँ भाव प्रदर्शित किया है, मन के दो भावों का- जहाँ एक भाव भगवत्-भक्ति की ओर अग्रसर होता है, तो दूसरा उसे सांसारिक विषयों की ओर घसीटता है। मन की स्थिति बड़ी विचित्र है। . . . . . . .. मूर्ख मन को कवि ने इस प्रकार समझाने का प्रयास किया है___ "मूर्ख मंन कब तक जहाँ में अपने को उलझाएगा, ध्यान श्री जिनराज के चरणों में कब तू लाएगा ?"
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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