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व्यक्तित्व और कृतित्य नारी में पुरुप से अधिक सहन-बक्ति का परिचय कवि के काव्य में चित्रित है। यह नारी दुःख के कारण जीवन से हारने वाली नारी नहीं है । उसकी कट-सहिष्णुता को देखिए__ "किन्तु नाथ क्या दुःख के कारण जीवन ने मर मिटना है"
जिस प्रकार रामायण की नायिका सीता वन में चौदह वर्ष तक रही है। केवल पति-सेवा के लिए उन कंटकमय मार्गों को भी फूल समझकर वहाँ चली है, उसी प्रकार एक विशाल राज्य की साम्रानी 'तारा' भी भारत की अतीत नारियों का अनुसरण करती है । और इसी उच्चत्तम नारी को स्वयं उसके पति से धन्य-वन्य की ध्वनि का विवरण कवि जी के काव्य में हैं । देखिए सम्राट् हरिश्चन्द्र क्या कह रहे हैं
"तारा तुम हो धन्य सर्वथा, धन्य तुम्हारे मात-पिता"
"शिक्षा लेंगी तुमसे आगे आने वाली महिलाएं, . विकट परिस्थिति में भी पति के चरणों पर कैसे जाएं।"
अथवा एक पतिव्रता नारी का चित्रण अमर काव्य में इस भांति हुआ है
"पतिव्रता पति-हित ठुकराती स्वर्गों का भी सुख प्यारा"
अमर काव्य में हमें गुप्त जी के विचार-"पति ही पत्नी को गति. - है"-का भी सजीव चित्रण मिलता है।
"आप एक असहाय दुःख की, ठोकर खाएँ दर-दर की।
मैं महलों में मौजे लूटू, मखमल के गद्दों पर की ।"
भारत की अतीत नारी को राजा पति के साथ रानी, और मजदूर पति के साथ मजदूरनी होने का गौरव देखिए
. "मैं अर्धाङ्गिनी स्वामी की हूँ, वे राजा थे मैं रानी। ___.. आज वने मजदूर, वर्नू मैं मजदूरनी तो क्या हैरानी ?" अमर काव्य में मानव :
यों तो अमर काव्य में हमें सर्वत्र मानव-सन्देश का दिग्दर्शन मिलता है। कवि ने मानव से भगवान् की आराधना में लीन हो जाने