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________________ बहुमुखी कृतित्व १०३ अमर कवि की प्रस्तुत कविताएँ उस समय का प्रतिनिधित्व करती हैं, जब कि भारत में जमींदारी उन्मूलन नहीं हुआ था और जमींदारों का नैतिक पतन अपनी चरम सीमा पर था-गरीब जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐश करने वाले ये जमींदार सुरा-सुन्दरी की भेंट चढ़ चुके थे। किसी भी शादी में वेश्याओं के नाच के विना उसे अधूरा माना जाता था, और वेश्या के नाच से उस समय के धनिक समाज की इज्जत में चार चांद लग जाते थे। उस समय आवश्यकता थी ऐसे समाज-सुधारकों की जो मानव-मात्र को इस विषैले नरक से निकाल कर सन्मार्ग का प्रदर्शन करें। प्रस्तुत प्रश्न पर कवि जी ने अपने कवितासागर में बहुत कुछ लिखा है "व्याहों में रंडियों का अच्छा नहीं नचाना, राष्ट्रीय शक्ति को यों अच्छां नहीं घटाना।" गांधीवादी विचारों से पूर्ण सहमत कवि अमर ने दलितों तथा शूद्रों को सम्मान का रूप दिया है-- "शूद्र की मुक्ति नहीं, अफसोस है क्या कह रहे ! वीर की तौहीन है, यह सोच लो क्या कह रहे !!" "अछूतों को अब तो मिलालो, मिलालो। घृणा इनसे अब तो हटालो, हटालो।" अमर काव्य में नारी-भावना : अमर कवि-काव्य में एक ऐसी सोती हुई नारी की कल्पना का दिग्दर्शन हुआ है। कवि की सारी नारी-भावना इसी सोती हुई नारी को जगाने के लिए लीन रही है। अमर-काव्य में नारी के लिए कोई शृङ्गारिक भावना नहीं है, अथवा अन्य कवियों की तरह उनकी कविता की प्रेरणा नारी नहीं है जैसे कि हम महाकवि पन्त के भावों में उनकी समस्त कोमल भावनाओं का केन्द्र नारी को ही देखते हैं अथवा प्रसाद काव्य की नारी, जो कि श्रद्धा है—मनु को अपनी शृङ्गारिकता की पोर आकर्षित करती है, किन्तु अमर-काव्य की नारी तो महान हैपूज्य है, किन्तु इस समय सोई हुई है और कवि उसे जगा रहा हैद्वेष-भाव दूर करने को कह रहा है
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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