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४. मुरली विहार ५. सुहाग रैन ६. विरह सरिता
७. रेखता संग्रह
८. स्नेह बिलास
६. रमक झमक बत्तीसी
१०. प्रीति पचीसी
११. ब्रज शृंगार
१२ स्नेह संप्राल
१३. नीति मंजरी
१४ शृंगार मंजरी
५५ वैराग्य मंजरी
१६ रंग चौपड़
१७. प्रेम पंथ
१८. दुःख हरण बेलि
१६. सोरठ ख्याल
२०. रात का रेखता
२१. ब्रजनिवि पदसंग्रह २२. ब्रजनिधि मुक्तात्रली २३ हरिपद संग्रह
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फा० बु० ७ रविवार
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मा० ब० २ शनिवार
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प्रा० सु० १२ बुधवार
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मा० बु० ६ रविवार जे०सु० ७ शनिवार ५. गुरुवार
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इसके अतिरिक्त एक आयुर्वेद विषयक विशाल 'अमृतसागर' नामक ग्रन्थ भी ( गद्यात्मक ) इनका लिखाया हुआ है । इन सबसे इनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा एव वैदुष्य ष्ट प्रकट होता है ।
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ब्रजराज किशोर भगवान् श्री कृष्ण के परमभक्त थे और सुना जाता है कि इन्हें श्री गोविन्ददेवजी के प्रत्यक्ष दर्शन होते थे, किन्तु, वजीर अली की घटना + के से इन्हें प्रत्यक्ष दर्शन होना बन्द हो गया था। इस जनश्रुति में तथ्यांश विवादास्पद होने पर भी इनके पद्यों द्वारा इनकी भावुकता एवं इनका भगवद्भक्ति में निमग्न रहना निःसन्देह सिद्ध होता है । इनका एक कवित्त सुधीजनों के प्रसाद हेतु यहां उट्टा करना ठोक होगा
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+ कहा जाता है कि अब के नवाब वजीर अती वजीरुहोला ) अंग्रेजों से विद्रोह करके भाग कर इनके यहां शरणागत हो गये थे, और इन्होंने उन्हें शरण देना स्वीकार भी कर लिया था किन्तु बाद में किन्हीं कारणों से इन्होंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर वजीर अली का अंग्रेजों को सौंप दिया। इससे भगवान् ने इन्हें विश्वासघात के पाप से प्रत्यक्ष दर्शन देना बन्द कर दिया था और परिताप से आजीवन सन्तप्त रहे ।
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