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जगत के सुप्रसिद्ध भक्त कवि तत्कालीन जयपुर नरेश महाराजा सवाई प्रतापसिंहदेव का संक्षिप्त परिचय आगे दिया गया है।
कणकुतूहलम् को इसके प्रणेताने यद्यपि नाटक संज्ञा दी है परन्तु यह किसी भी रूपक अथवा उपरूपक के लक्षणानुसार ठीक नहीं उतरता, यह तो एक कुतूहल मात्र है। इसका कथासार इस प्रकार हैप्रथम कुतूदल
सूत्रधार प्रवेश कर नटी को रङ्गस्थल पर बुलाकर कहता है कि उदुम्बरवंशोत्पन्न श्रीरत्नेश के पुत्र सदाशिव भट्ट की इस परिषत् में कोई नवीन सुन्दर नाटक का
आयोजन करो । इस प्रकार परम्परानुसार नाटक के आयोजन का क्रम बांधकर कथानक प्रारम्भ होता है कि मत्स्य देश में महाराजाधिराज श्री माधवसिंह नामक (प्रथम) नरेश हुये जो अत्यन्त दानी, गुणी, योद्धा एवं प्रतापी थे। उनके पिता अत्यन्त पराक्रमी धीर, वीर गुणगणमणिमण्डित श्रीजयसिंह थे। उनके पौत्र (अर्थात् श्रीमाधवसिहजी के पुत्र) अत्यन्त तेजम्बी, प्रजापालनतत्पर, धर्म-नीति-नय-धुरन्धर श्रीप्रतापसिंहनामक नरेश हैं। उनकी सभा में विद्वानों और गुणीजनों का अतिशय समादर होता है। तदनन्तर सभा में नटी प्रवेश कर के पहले महाराजा को शुभाशीर्वाद देती है, पश्चात् गणेश-शिव-स्तवनादिमङ्गलानन्तर सभासद नटी के सौन्दर्य का अत्यन्त सजीव वर्णन करते हैं । नख से शिखपर्यन्त शृंगारपूर्ग ऐसा मनोरम वर्णन नाटकों में अन्यत्र कम ही पाया जाता है। इस प्रकार नत्यगान में आधी रात्रि हो जाती है। द्वितीय कुतूहल
इसके पश्चात् नर्तकगण बाहर चले जाते हैं। फिर, महाराज प्रतीहारी को भेजकर पट्टमहिषी को बुलाते हैं एवं उनके आगमन पर मधुपानलीला प्रारम्भ होती है। आगे, संयोग शृङ्गार का प्राञ्जल शब्दों में मधुर वर्णन है। इस प्रकार सम्भोगवर्णनान्त द्वितीय कुतूहल समाप्त होता है। तृतीय कुतूहल . मनोविनोदार्थ महाराज की अनुज्ञा से बुलाई गई देववाणी-सम्भाषण में प्रवीण पट्टमहिपी की किसी सखी द्वारा महाराज को यह आख्यायिका सुनाई जाती है
'पूर्व दिशा में कर्णपुर नामक नगर में परम धार्मिक विजयकीर्ति नामक राजा हुआ। उसके उदारकीर्ति, धमकीर्ति, जयकीर्ति, देशकीर्ति तथा आहवकीति नामक पांच पुत्र थे । एक बार राजा के यहां कोई सुन्दर नाटक खेला गया जिसे सभासदों के साथ राजकुमारों ने भी देखा । उस नाटक वा राजा के पांचवें पत्र आहवकीर्ति पर ऐसा विलक्षण प्रभाव पड़ा कि नाटक देखने के पश्चात जब सब राज कुमार चले गये तो एकान्त में उसने पिता से निवेदन किया 'महाराज! मुझे देश देशान्तर में भ्रमण की इच्छा है अतः कृपया जाने की अनुमति प्रदान कीजिये। राजा ने बहुत समझाया कि तुम्हें बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यहां किसी प्रकार का अभाव नहीं है, किन्तु कुमार ने कुछ दिन बाद लौट