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राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, भाग - १ ]
श्रीषरतरगछ महिमाधारी, श्रीजिनचद्र सूरि जयकारी ।
जमहू नरनारी रे शातिहरप वाचक सषकारी । तासु सीस सुविचारी रे ।। ११ हे जिनहरष भविक नर सुरिणज्यो, नवपद महिमा धुरिणज्यो रे । अडतालीस ढाल गुरिणज्यो, निज पातिक वन लुरिगज्यो रे ॥ १२ इति श्रीसिद्वचक्र महिमा उपरि श्री श्रीपालरास मपूर्णम् ॥ सवत १८१४ वर्षे फाल्गुन मासे सुक्ल पक्षे १५ तिथी शुक्रवारे पाटण नगरे प० महीवल्लभेन लिषित । श्रीपाल रास ( गणरत्नसूरिप्रणीत )
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३४८६ आदि
||०|| कर कमल जोडेवि करि, सिद्धसयल परगमेसु । श्री श्रीपाल नरिदनो, राम बधय भणे ॥ १ महीयलि मत्र अनेक छि, पपलि मपडिगमार ।
भव सायर ते ऊतरइ, जो जपीइ श्रीनवकार ।। २
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अन्त - श्रीगुणसमुद्रह सूरि, तास पाटि मोहामरगा || मा० ॥ वदीए प्राणद पूरि ॥ ६३ भवीया भवी इन उन ए मा० श्री गुरदेव हस्तरि ।
तास सीसि रास रचिउ ए मा० । श्रीगुणरत्नह सूरि ॥ ६४ पनर एकत्रीसइ मागसिरइ ए ॥ मा० ॥ उजली बीज गुरुवार । रास रचिउ सिद्ध चक्रनु ए ॥ मा० ॥ गाइड श्रीनवकार ।। ६५ एक माना जे जिन जपइए || मा० ॥ तेह घरि मगल माल । रिद्धि अनत भोगवइ ए मा० जिम भूपति श्रीपाल ।। ६६ इति श्रीसिद्ध चक्र श्रीपाल रास सपूर्ण ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री ॥
समरासारग कडषो
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प्रादि- || समरासारग कडषो लभ्यते ॥1
दूहा - पातीसाह ग्यारादीन, दलीपत सुलतान ।
तास तणे वजीर जो, षान मुलाकम मान ॥ १ पातसाहा पोतावकी, हय गय रथ असवार । डोल मुषासरण पालकी, छत्र चामर ले सार ॥ २ अन्त- जाच करी घेर श्रावउ, वरतो जैजैकार ।
कर जोडी देपाल भणे, तु प्रोस वस सरणगार ॥ ४४ ती श्रीसमरासारग कडषो सपूर्ण २६ ॥
१६५३. ४२८७ (१६) सवाई जैसहजीकी जोधपुर चढाईका वर्णन
आदि - "सबत १७९७ का मोती सावरण बदी ८ ने श्रीमाहराजा सवाई जैसघजी जोधपुर वुपर चढा । राजा अभैसघरी हुकम पॉतसाह महमुदसाह काथे चढा । सो रोज पदरामै १५ जोधपुर जाइ लागा। नरफ मडोवरकी डेरा जाइ कीया | मुकाम १ आगे युद्धके खर्चे और जोधपुरकी तरफसे लिये गये उपहार प्रादिका वर्णन है जो अपूर्ण है ।
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