________________
राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूचि, भाग - १ ]
१७७२
३६५३ शत्रुञ्जयउद्वार रास (नयसुन्दर विनिर्मित ) आदि - ||६०|| गुरुभ्यो नम ॥
विमल गिरिवरमडन जिनराय । श्रीरिसहेसर पय नमी ॥ धरीय व्यान सारदा देवी । श्रीसिद्धाचल गाई सिउ || ess भाव निरमल घरेवी । सेत्रुजि गिरिवर माहि वडउ ॥ मिद्धि अनती कोडि । जिहा मुनिवर मुर्गात गया ॥ वदु बे कर् जोडि ॥ १
अन्न- भानुमेरु पडित सीस दोए कर जोडि कहि ||
नयसुदरो प्रभु पाय सेवा नित करे वा । देहि दशरण जय करो ॥। ११४ इति श्रीसेत्रजयउद्धार समाप्त | स० १६६५ वर्षे मागसिरि मुदि २ महोपाध्याय विमलहर्षगरि शिष्य गरिण हसविजयेरणालेषि ॥ शुभ भवतु ॥
१७४४ ६८० श्रीपाल रास (विनयविजय यशोविजय विरचित) *
आदि - ॥ श्री सद्गुरुभ्यो नम ॥
दूहा - कल्पवेलि कवियरणतरिण, सरमति करि सुपसाय । सिद्ध चक्र गुणगावता, पूरि मनोरथ माय ॥ १ अलिय विघन सवि उपसमे, जपता जिन चोवीस । नमता निज गुरुपयकमल, जगमा वधे जगीस ॥ २
१८४४
अन्त- देह सबल ससनेह परेछे, रग अभग रसाला जी ।
१८४३ ६०३
अनुक्रमे तेह महोदय पदवी लहिस्यै ज्ञान विशाला जा ।। १४ ।। त०
इति श्रीमहोपाध्याय श्रीकीर्तिविजयगरिण शिष्य उपाध्याय श्रीविनयविजयगणि विरचिते उपाध्याय श्रीजशविजयगरिण पूरिते प्राकृतबधे श्रीसिद्धचक्रमहिमावर्णनाधिकारे श्रीपाल चतुर्थ खड सपूर्णम् ॥ आगे स० १६२३ मे सिद्धचक्रपजाविधि लिखी है ।
शुकबहोत्तरी चोपई
[ १३७
आदि- ॥ श्रीगणेशाय नम || श्रीमाताजी सत्य छे ॥ छ ॥
सयल सुरासुर माया मंगल कलारण सुजस जय निलया । वर विजाधरण दाया सा सारद पढम पद णमामि ॥ १ अन्त- मगल पेहेलो जिन चोवीस । बीजो मगल गोमय सीस ॥ त्रीजो मगल गुरु अभिधान । चोथो जिन मामन प्रधान ॥ ५२ इति श्रीरसमजरी कथा शुकबहूतरी चोपाई सपूर्ण समाप्त भवतु ॥ स. १६०८ना वर्षे ।
४०१०
शुकबहोतरी
श्रादि - ॥ ६० ॥ श्रीगणेशाय नम । श्रथ वात सूवावहुत्तरी लिष्यते ॥
* इस कृतिकी चार विभिन्न प्रतियाँ हैं चारोके कर्ता एव पाठ अलग-अलग है।