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(९५) जाकेश्रवनबचननही,नहिमनसुरति विराम। जडता सो जंडवत भयो, बूंथा ताको नाम ॥३८॥
चौपाई। डूंघा सिद्ध कहे सब कोऊ। सुंघा उंघा मूरख दोऊ । बूंघा घोर बिकल संसारी। चूंघा जीव मोख अधिकारी ॥३९॥ दोहा-चूंधा साधक मोक्षको, करे दोष दुख नास ।
लहे पोष संतोष सों, वरनो लक्षन तास ॥४०॥ कृपा प्रसम संवेग दम, अस्ति भाव वैराग । ए लक्षन जाके हिये, सप्त व्यसनको त्याग ॥४१॥
' ' चौपाई। जूवा आमिष मदिरा दारी। आषेटक चोरी पर नारी ॥ एई सात व्यसन दुखदाई । दुरितमूलदुर्गतिके भाई॥४२॥ दोहा-दर्वित ए सातों व्यसन, दुराचार दुखधाम ।
भावित अंतर कलपना, मृषा मोह परिनाम ॥४३॥ सवैया इकतीसा-अशुभमें हारि शुभ जीति यह दूतकर्म देहकी मगनताई यहे मांस भखिबो। मोहकी गहलसों अ. जाने यहै सुरापान, कुमतिकीरीति गनिकाको रस चखिबो॥ निरदे व्हे प्राण घात करिवो यहे सिकार, परनारी संग पर बुद्धिको परखिबो । प्यारसों पराई सोजगहिबेकीचाह चोरी, येई सातोंव्यसन बिडारि ब्रह्म लखिबो॥४४॥ दोहा-विसनं भाव जामें नहीं, पौरुष अगम अपार।
कियेप्रकट घटसिंधुमथि, चौदहरतनउदार ॥४५॥ - सवैया इकतीसा-लक्षमी, सबुद्धि, अनुभूति, कौस्तुभमणि, वैराग कलपवृक्ष, संत सुबचन है । ऐरावत, उधिम