________________
(५८) लहै पूरनके परचै । भयो निरदोर याहि करनो न कछु और, ऐसो विश्वनाथ ताहि बनारसी अरचै ॥ ९७ ॥
सवैया इकतीसा-काहु एकजैनी सावधानव्हे परम पैनी, ऐसी बुद्धि छैनी घटमांहि डारिदीनी है। पैठी नौ करमभेदि दरक करस छेदि, सुसाउ विभाव ताकी संधि सोधि लीनी है ॥ तहां मध्य पातीहोइ लखी तिन्हि धारादोइ, एकमुधा सईएक सुधारस भीतीहै। सुधासों विरचिसुधा सिन्धुमें मगन भई, एती लव क्रिया एकससैवीच कीनी है ॥९८॥ दोहा-जैसी छैनी लोहकी, करै एकसों दोइ। .
जड़ चेतन की भिन्नता, त्यों सुबुद्धिसों होइ ॥ ९९॥ सवैया इकतीसा-( सर्व दृस्वक्षर चित्रालङ्कार ) धरति धरम फल हरति करममल, मनवच तनवल करत समरपन । भवति असन सित चखाति रसन रित, लखति अमित वित करिचित दरपन ॥ कहति मरम धुर दहति भरमपुर, गहति परमगुर उर उपसरपन । रहति जगति हति लहाति भगति रति, चहात अगतिगति यह मति परपन ॥३०॥
सवैया इकतीसा-(सर्व गुरुअक्षर चित्रालङ्कार)रानाकोसो वाना लीने आपा साधे थाना चीने, दाना अंगी नाना रंगी खाना जंगी जोधाहै। मायावेली जेतीतेती रेतेमें धारेतीसेती, फंदाहीको कंदाखादे खेती कोलो लोधाहै ।। वाधा सेती हाता लोरे राधा सेतीतांता जोरे, वादीसेती नांता तोरै चांदीकोसो सोधा है। जानैजाही ताही नीक मानेराही पाही पीके, ठाने वातै डाही ऐसो धारावाही बोधा है॥१॥
सवैया इकतीसा-जिन्हिके दरब मिति साधत छ खंड.थि