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(३४) कौतुकी कहावै तासों कौन कहै रंक है । जैसे विभचारिनी विचारै विभचार बाझो, जारहीसों प्रेम भर तासों चित्त वंक है। जैसे धाइ बालक चुंघाइ करै लालि पालि, जाने तां. हि और को जदपि वाके अंक हैं । तैसे ज्ञानवंत नानाभांति करतति ठान, किरियाको भिन्न मानै यातें निकलंक है।॥ ८॥
पुनः-जैसै निशिबासर कमल रहै पंकहिमें, पंकज कहावै पैन याके ढिग पंक है। जैसे मंत्रवादी विषधरसों गहावै गात, मंत्रकी सकति वाके विना विपमंक है।जैसै जीभ गहै चिकनाइ रहै रूख अंग, पानी में कनक जैसै काइसों अटंक है। तैसै ज्ञानवंत नानाभांति करतूतिठान, किरियाको भिन्न मा. नै याते निकलंक है ॥ ८२ ॥ सोरठा-पूर्व उदय संबंध, विषय भोगवै समकिती।
करैन नूतन वंध, महिमा ज्ञान विरागकी ॥८३॥ सवैया तेईसा-सम्यकवंत सदा उर अंतर, ज्ञान विराग उभै गुन धारै । जासु प्रभाव लखै निज लक्षन, जीव अजीव दशा निरवारै।आतमको अनुभौ करिव्है थिर ॥ आपुतरै अरु
औरनि तारे, साधि सुर्व लहै शिव सर्म सुकर्म उपाधि व्यथा वमिझारै ॥ ८४ ॥
सवैया तेईसा-जो नर सम्यक्वंत कहावत, सम्यक ज्ञा. न कला नहि जागी। आतमभंग अवंध विचारत, धारत संग कहै हम त्यागी ॥ भेष धरै मुनिराज पटतर, मोह महानल अंतर दागी । सून्य हिये करतूति करै पर सो सठ जीवन होइ विरागी ॥ ८५ ॥ सवैया तेईसा-ग्रंथ रचै चरचै शुभ पंथ लखै जग में