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________________ TRIPATI MONERar जा ओं श्रीजिनायनमः। अथ श्रीसमयसार नाटक बनारसीदासकृत प्रारंभः दोहा-श्रीजिन बचन समुद्रको, कौंलगि होइ बखान । . रूपचंद तोह लिखै, अपनी मति अनुमान ॥१॥ __ कवित्त इकतीसासर्व हस्वाक्षर- करम भरम जग तिमिर हरन खग, उरग लखन पग शिवमग दरसि । निरखतनयन भाविक जल वरखत, हरखत अमित भाविकजनसरलि॥ मदन कदन जित परम धरम हिन, सुमिरत भगत भगत सब डरसि। सजल जलद तन सुकुट संपत फन, कुमठ दुलन जिन नमत बनरसि ॥१॥ सर्व लघु स्वरांत अक्षरयुक्क छप्पय छंद--सकल करमखल दलन, कण्ठ सठ पवन कनक नग । धवल परमपद रमन जगत जन अमल कमल खग ।। परमत जलधर पवन, सजल धन सम तन समकर । पर अघ रजहर जलद, सकल जन नत भव भय हर ॥ यम दलन नरक पंद छय करने, संगम तट भव जल तरन । बर सबल सदन बन हर हन, जय जय परम अभय करन ॥२॥ . ., सवैया इकतीसा--जिन्हके वचन उर भारत जुगल नांग, ये धरनिंद पदमावति पलक में जाके नारा सहिमा सों: धातु कनक करै, पारस पाधान नागी भयो खलक -
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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