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________________ ( १०७ ) अलप ताते समान बखानिये | करे भेदाभेदको विचार विसताररूप, हेय गेय उपादेयसों विशेष जानिये ॥ २२ ॥ सोरठा - थिंति सागरते तीस, अन्तरमुहुरत एकवा | 1 अविरति समकिति रीस, यहचतुर्थ गुनथानइति ॥२३॥ दोहा - अव बरनो इक्वीलगुन, अरु बावीसअभष्य । जिन्ह के संग्रह त्यागसों, सोहे श्रावक पप्य ॥ २४ ॥ सवैया इकतीसा - लज्जावन्त दयावन्त प्रसन्त प्रतीतवन्त, परदोषको ढकैया पर उपकारी है । सोम दृष्टि गुन ग्राही गरिष्ट सबको इष्ट, सिष्ट पक्षी मिष्टवादी दीरग.वि. चारी है ॥ विशेषज्ञ रसज्ञ कृतज्ञ तज्ञ धरमज्ञ, नदीन न अभिमानी मध्य विवहारी है । सहजै विनीत पाप किया सोती ऐसो, श्रावक पुनीत इकवीस गुनधारी है ॥ २५ ॥ कवित्त छन्द - प्रोरा घोरवरा निसभोजन, बहु बीजा वेंगन सन्धान । पीपर वर उँबरि कटूंबरी, पाकर जो फल होइ अजान || कन्दमूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरु मदिरापान । फल अति तुच्छ तुसार चलित रस, जिनमत ए बावीस अखान ॥ २६ ॥ दोहा - अब पंचम गुनथानकी, रचना बरनो अल्प | जामें एकादश दशा, प्रतिमा नाम विकल्प ॥ २७ ॥ 1 : सवैया इकतीसा - दंसन विशुद्धकारी बारह विरतधारी, सामाचारी पर्व पोसह विधि वहे । सचित्तको परिहारी दिवा अपरस नारी, आठोजाम ब्रह्मचारी निरारम्भी व्है रहे । पाप परिग्रह छंडे पापकी नं शिक्षा मंडे, कोउ याके निमिस
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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