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________________ REGISTRERIORIGIGANGASISI कोउ कहे समल विमलरूप कोउ कहे, चिदानंद तैसाही वखान्यो जैसे जिनही ॥ | बंध्यो माने खुल्यो माने दै नयके भेदजाने, सोई ज्ञानवंत जीव तत्त्व पायो तिनही ॥२५॥ अर्थ-चतुर्गतिमें भ्रमण करनेते आत्माकू व्यवहार नयसे देखिये तो आत्मा बंध्या दीखे है, अर निश्चय नयसे देखिये तो ज्ञान स्वरूपी आत्माकू कोईने बांध्या नहीं है पुद्गलकर्म अनादिके है सो नवीन पुद्गल कर्मका बंध करे है परंतु अमूर्तिक आत्मा अबंध है । ताते एकलो व्यवहार पक्षसे कहे। तो आत्मा बंधमें है अर एकलो निश्चय पक्षसे कहे तो आत्मा सदा अबंध है, ऐसे दोऊ पक्ष अनादि । 5 कालके है । दृष्टांत-जैसे गौळू बंधि देखि व्यवहार नयवाला गौ• बांधी है ऐसा कहे अर निश्चय नयते स्वरूप जाननेवाला कहेकी डोरीकी गाठ डोरीसे बंधी है परंतु गाय डोरीसे बंधी नही है । तैसे जो व्यवहार नयवाला होय सो आत्माकू समल (कर्म सहित ) कहें अर जो निश्चय नयवाला होय सो आत्माकू विमल (कर्म रहित) कहे परंतु समल विमल कहना नयका पक्ष है, जिसने जैसे अपने । नयसे चिदानंदकू वखाण्यो है तैसाही चिदानंद है । अर जो सम्यक्दृष्टी है सो आत्माको बंध सहित माने है तथा बंध रहितही माने है ऐसे दोऊ नयके भेद जाने है, सोही ज्ञानवंत है अर तिसनेही 5जीव तत्वका स्वरूप जान्या है ॥ २५ ॥ ॥ अव दोऊ नयकू जानकर समरस भाव में रहे है ताकी प्रसंशा करे है ॥ सवैया ३१ सा ॥प्रथम नियत नय दूजो व्यवहार नय, दुहुकों फलावत अनंत भेद . फले है ॥ ज्यों ज्यों नय फैले त्यों सो मनके कल्लोल फैले, चंचल सुभाव लोकालोकलों उछले है ।। OSHIRISH
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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