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________________ जे जगमांहि अनादि अखंडित, मोह महा मदके मतवारे ॥ ते जड चेतन एक कहे, तिनकी फिरि टेक टरे नहि टारे ॥ १२ ॥ I अर्थ-कोई कहे है की जीव अंगुष्ठ प्रमाण है वा तंदूल प्रमाणहै ऐसे जीवको मूर्तिमान स्थापे है नातिनकी मूढता बतावे है-जीवका लक्षण चेतन है अर अजीवका लक्षण अचेतन (जड ) है, ऐसे || लक्षण भेदकार दोऊ पदार्थ न्यारे न्यारे है । सम्यग्दर्शनका उजाला जाके हृदयमें भया ऐसा विचक्षण पुरुष है सो, दोऊनिकू भिन्न भिन्न देखे है अर भिन्न भिन्न देखि जीव अजीवका निश्चय (निर्धार) करे का है। पण जगतमें जे पुरुष अनादिका अखंडित, महा मोह मदकरि उन्मत्त है। ते पुरुष मिथ्यात्व अंधकारसे जीव अर पुद्गलको एक कहे है, तिनकी टेक ( हट्ट) फिरि टारेतैहूं नही टरे है ॥ १२ ॥ ॥ अव ज्ञाताका विलास कथन ॥ सवैया २३ सा॥-. या घटमें भ्रमरूप अनादि, विलास महा अविवेक अखारो॥ तामहि और सरूप न दीसत, पुद्गल नृत्य करे अति भारो॥ फेरत भेष दिखावत कौतुक, मोज लिये वरणादि पसारो॥ मोहसु भिन्न जुदो जडसों चिन् , मूरति नाटक देखन हारो ॥ १३ ॥ अर्थ—इस घटमें भ्रमरूप अनादिका, विस्तीर्ण महा अविवेकका आखाडा है । तिस अविवेकके । 5 अखाडेमें अन्य कोऊ शुद्ध स्वरूप तो दीखताही नहि है, अर एक पुद्गलद्रव्य अतिभारी नृत्य करे है। ये 5 पुद्गल एकेंद्रियादि पर्यायरूप नाना भेषकुं फेरत है, अर स्पर्श रस गंध अर वर्णादिकका पसारा लिये नाना SESSEREBUIE SESSISSGUARIG
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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