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________________ समय वानी जीव एक करि बूझे । जाको चित जड ग्रंथ न सूझे ॥ १३ ॥ वानी लीन भयो जग डोले । वानी ममता त्यागि न वोले ॥ ॥१५०॥ ॐ है अनादि वानी जगमांही । कुकवि वात यह समुझे नाही ॥ १४ ॥ ॥ अव वाणीकी व्याख्या कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ॐ जैसे काहूं देशमें सलील धारा कारंजकि, नदीसों निकसि फिर नदीमें समानी है। ६ नगरमें ठोर ठोर फैली रहि चहुं ओर । जाके ढिग वहे सोई कहे मेरा पानी है। हूँ त्योंहि घट · सदन सदनमें अनादि ब्रह्म, वदन वदनमें अनादिहीकी वानी है ॥ है करम कलोलसों उसासकी वयारि वाजे, तासों कहे मेरी धुनि ऐसो मूढ प्राणी है ॥१५॥ है ऐसे कुकवि कुधी, गहे मृषा पथ दोर । रहे मगन अभिमानमें, कहे औरकी और ॥ १६ ॥ ॐ वस्तु खरूपलखे नही, वाहिज दृष्टि प्रमान । मृषा विलास विलोकिके, करे मृषा गुणगान ॥ १७॥ ॥ अव मृपा गुण गान कथन ॥ सवैया ३१ सा ॥मांसकी गरंथि कुच कंचन कलश कहे, कहे मुख चंद जो सलेषमाको घर है॥ हाडके सदन यांहि हीरा मोती कहे तांहि, मांसके अधर ऊठ कहे विव फर है॥ हाड दंड भुजा कहे कोल नाल काम जुधा, हाडहीके थंभा जंघा कहे रंभा तरु है। योंहि झूठी जुगति बनावे औ कहावे कवि, येते पर कहे हमे शारदाको वरु है ॥१८॥ चौ०-मिथ्यामति कुकवि जे प्राणी । मिथ्या तिनकी भाषित वाणी ॥ मिथ्यामति सुकवि जो होई । वचन प्रमाण करे सब कोई ॥ १९ ॥ RECTRESSEMASALA ॥१५०॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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