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________________ GRISHISHIGURASHISHISHIGOSLALISLAUGAS ॥ अथ षष्ठ प्रमत्त गुणस्थान प्रारंभ ॥६॥दोहा॥पंच प्रमाद दशाधरे, अट्राइस गुणवान । स्थविर कल्प जिन कल्प युत, है प्रमत्त गुणस्थान॥७७॥ धर्मराग विकथा वचन, निद्रा विषय कषाय । पंच प्रमाद दशा सहित, परमादी मुनिराय॥७॥ All अर्थ-जो मुनी अठ्ठावीस मूल गुण पाले अर पांच प्रमाद अवस्थाकू धरे । सो छठे प्रमत्त गुणस्थान है । इस गुणस्थानमें स्थविर कल्प अर जिन कल्प ऐसे दोय प्रकारके मुनी रहे है ॥ ७७ ॥ धर्म ऊपर प्रेम राखे, धर्मोपदेश करे, निद्रा लेवे, भोजन करे, कषाय करे, ऐसे पांच प्रमादकी अवस्था सहित है ते प्रमादी मुनीराज है ॥ ७८.॥ - - ॥ अव मुनीके अठावीस मूल गुण कहे है । सवैया ३१ सासापंच महाव्रत पाले पंच सुमती संभाले, पंच इंद्रि जीति भयो भोगि चित चैनको ॥ षट आवश्यक क्रिया दींत भावीत साधे, प्रासुक धरामें एक आसन है सैनको ॥ मंजन न करे केश ढुंचे तन वस्त्र मुंचे, त्यागे दंतवन पैं सुगंध श्वास वैनको॥ ठाडो करसे आहार लघु मुंजी एक वार, अठाइस मूल गुण धारी जती जैनको ॥७९॥ | अर्थ-पांच महाव्रत पाले, पांच सुमती संभाले, अर पांच इंद्रियों• जीतके इनके विषय सेवनेकू चित्तमें रुचि नहि राखे । अर छह आवश्यक क्रिया द्रव्यते तथा भावते साधे, [ ऐसे इकईस गुण ही भये ] अर प्रामुक भूमीपे बैठे वा शयन करे, स्नान नहि करे, केश हातसे लोच करे, नग्न रहे, दंत ।। नहि धोवे, खडे खडे कर पात्रमें आहार ले, दिनमें एकवार एक ठिकाणे अल्प खाय, ऐसे अठावीस मूल गुण धरे सो जैनका यती है ॥७९॥ कसकसक
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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