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॥अथ पंचम अणुव्रत गुणस्थान प्रारंभ ॥५॥ ॥ अव पांचवे गुणस्थानके प्रारंभमें श्रावकके इकवीस गुण कहे है ॥ दोहा ॥ सवैया ३१ सा ॥अब वरनूं इकवीस गुण, अर बावीस अभक्ष । जिन्हके संग्रह त्यागसों, शोभे श्रावक पक्ष ॥५२॥
लज्जावंत दयावंत प्रसंत प्रतीतवंत, पर दोषको ढकया पर उपकारी है ॥ सौम्यदृष्टी गुणग्राही गरिष्ट सबकों इष्ट, सिष्ट पक्षी मिष्टवादी दीरथ विचारी है। विशेषज्ञ रसज्ञ कृतज्ञ तज्ञ धरमज्ञ, न दीन न अभिमानी मध्यव्यवहारी है।
सहज विनीत पाप क्रियासों अतीत ऐसो, श्रावक पुनीत इकवीस गुणधारी है ॥५३॥ अर्थ-अब इकवीस गुणका अर बावीस अभक्षका वर्णन करूंहूं । ते इकवीस गुण ग्रहण करनेसे अर बावीस अभक्ष त्याग करनेसे श्रावकके पांचवे गुणस्थान शोभे है ॥ ५२ ॥ लज्जावंत, दयावंत, क्षमावंत, श्रद्धावंत, परके दोष• ढाकणहार, परोपकारी, सौम्यदृष्टी, गुणग्राही, सज्जन, सबको इष्ट, सत्यपक्षी, मिष्टवचनी, दीर्घ विचारी, विशेष ज्ञानी, शास्त्रका मर्मी, प्रत्युपकारी, तत्वदर्शी, धर्मात्मा, न दीन न अभिमानी, विनयवान, पाप क्रियासे रहित, ऐसा पवित्र इकवीस गुण श्रावक धरे है ॥ ५३ ॥
॥ अव वावीस अभक्षके नाम कहे है ॥ कवित्त छंद - ओरा घोखरा निशि भोजन, बहु बीजा बैंगण संधान ॥ . . पीपर वर उंबर कळंबर, पाकर जो फल होय अजान ॥ . कंद मूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरु मदिरापानः ॥ • फल अति तुच्छ तुषार चलित रस, जिनमत ये बावीस अखान ॥ ५४॥