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________________ समय-२ ॥ अथ श्रीवनारसीदासकृत चतुर्दश गुणस्थानाधिकार प्रारंभ ॥ सार. अ०१३ ११३१॥ हूँ ॥ मंगला चरण ॥ जिनप्रतिमाजीको नमस्कार ।। दोहा - * जिन प्रतिमा जिन सारखी, नमै बनारसि ताहि । जाके भक्ति प्रभावसो, कीनो ग्रंथ निवाहि ॥१॥ हूँ अर्थ-जिन प्रतिमा है सो जिनेश्वर समानहि निर्विकार मुद्रा है, तिस निर्विकार प्रतिमा हूँ बनारसीदास नमस्कार करे है। जिनके भक्तिके प्रभावसे ग्रंथका गहनार्थहूं सुलभ हो गया है ॥ १॥ ॥ अव जिनप्रतिमाके दर्शनका माहात्म्य कथन करे है ॥ सवैया ३१ सा ।।जाके मुख दरससों भगतके नैन नीकों, थिरताकी वानी वढे चंचलता विनसी॥ मुद्रा देखें केवलीकी मुद्रा याद आवे जहां, जाके आगे इंद्रकी विभूति दीसे तिनसी॥ जाको जस जपत प्रकाश जगे हिरदेमें, सोइ शुद्ध मति होइ हुति जोमलिनसी ॥ कहत वनारसी सुमहिमा प्रगट जाकि, सो है जिनकी छवि सु विद्यमान जिनसी ॥२॥ 6 अर्थ-श्रीजिनप्रतिमाके मुखका दर्शन करनेसे, भक्तजनके नेत्रकी चंचलता मिटिके स्थिरता बानी बढे है । तथा पद्मासन दिगंबर मुद्राकुं देखते ही केवलीभगवानके स्वरूपकी याद आवे है, अर ४ तिस निर्विकार दिगंबर स्वरूपके आगे इंद्रादिक देवताके श्रृंगार वैभवादिक शोभा तृणवत् दीसे है । केवली भगवानके गुणानुवाद (चौतीस अतीशय, आठ प्राप्तिहार्य, अर अनंत चतुष्टय ) जपनेसे भक्तके * हृदयमें ज्ञानका प्रकाश होय है, अर पूर्वे जो मलीन वुडी हुती सो शुद्ध होय है । बनारसीदास कहे है। " * की जिनप्रतिमाकी ऐसी प्रत्यक्ष महिमा है, ताते जिनेंद्रकी प्रतिमा साक्षात जिनेश्वरके समान है ॥२॥ CREATIOGRAHASRAELCOUGREECESSAGE ॥१३॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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