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________________ * SUSHISHALOSUOSIGHISOARALISSIG अर्थ-आत्माके अनुभवकी कला, टीकाकी कला, अर कविताकी कला, ये तीनूं कला सदाकाल अक्षर अर अर्थ ( मोक्ष पदार्थ) से भरी है, अर काम धेनूके सेवा समान महा सुखदायक है। इसिमें निर्बाध शुद्ध परमात्माके गुणका वर्णन कह्या है, ताते परम पावन है सो भव्य जीवकू इसिकी है। स्वाध्याय करना योग्य है । ये तीनूं कला मिथ्यात्वरूप अंधकारका नाश अर सम्यक्तकी वृद्धी करन-11 हारी है, जैसे दोय प्रहर पर्यंत सूर्यका किरण चढता चढता बढे है । ऐसे अमृतचंद्र आचार्यकी कला त्रिधारूप (आत्माका अनुभव, ग्रंथकी टीका, अर काव्य कविता संबंधी वुद्धी, ) धरे है ॥ ५० ॥ नाम साध्य साधक कह्यो, द्वार द्वादशम ठीक । समयसारनाटक सकल पूरण भयो सटीक ॥५१॥ ____ अर्थ-ऐसे साधक अवस्था अर साध्य अवस्थाका बारमा अधिकार कह्या सो श्रीअमृतचंद्र आचार्यकृत समयसार नाटक ग्रंथकी संस्कृत कलशाबंध टीका है तिसके अनुसार भाषा अर वचनिका कही सो समस्त समाप्त भई ॥ ५१ ॥ PIT इति श्रीसमयसार नाटकको बारमा साध्य साधक द्वार बालबोध अर्थ सहित समाप्त भयो ॥ १२ ॥ ॥ अव ग्रंथके अंतमें श्रीअमृतचंद्रआचार्य आलोचना करे है ॥ दोहा । सवैया ३१ सा - अब कवि पूरख दशा, कहे आपसों आप । सहज हर्ष मनमें धरे, करे न पश्चात्ताप ॥१॥ al अर्थ-अब अमृतचंद्र कवी है ते अपनी पूर्व स्थिति, आपसों आप कहे हे । अर आपना आत्म स्वरूप जाननेसे स्वाभाविक हर्ष मनमें धरे है, पण पश्चात्ताप करे नही ॥१॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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