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________________ तैसे ज्ञानहूं पर्याय माफक बहुत रूप धरे तोहूं ज्ञान एकही है । ज्ञान है सो निर्विकल्प अर आत्मद्रव्यके समान अविनाशी है, तथा ज्ञानमें ज्ञेय नहि व्यापे है ॥ १७ ॥ . ॥ अव सर्व द्रव्यमय ब्रह्म है इस पष्ठम नयका स्वरूप कहे है । सवैया ३१ सा ॥कोउ मंद कहे धर्म अधर्म आकाश काल, पुदगल जीव सव मेरो रूप जगमें ॥ जानेन मरम निज माने आपा पर वस्तु, वधि दृढ करम धरम खोवे डगमें ॥ समकिती जीव शुद्ध अनुभौ अभ्यासे ताते, परको ममत्व त्यागि करे पगपगमें। ___ अपने स्वभावमें मगन रहे आठो जाम, धारावाही पंथिक कहावे मोक्ष मगमें ॥१८॥ अर्थ-कोई ( ब्रह्मअद्वैतवादी ) कहे- धर्म अधर्म आकाश काल पुद्गल अर जीव ये समस्त जगतमें ब्रह्मरूप है। ऐसे मंदबुद्धी आत्म खरूपके मर्मळू जाने नही अर जड वस्तुळू आत्मा माने है, ताते दृढ कर्म बांधि अपनो ज्ञान स्वभावकू क्षणोक्षणीं खोवे है । अर सम्यक्ती जीव है सो शुद्ध आत्मानुभवका अभ्यास करे है ताते, पुद्गलका ममत्व पगपगमें त्यागे है। अर अपने आत्मस्वभावमें 81 आंठो पहर मग्न रहे है, सो मोक्षमार्गका धारावाही पथिक कहावे है ॥ १८॥ .. ॥ अव ज्ञेयके क्षेत्र प्रमाण ज्ञान है इस सप्तम नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥कोउ सठ कहे जेतो शेयरूप परमाण, तेतो ज्ञान ताते कछु अधिक न और है ॥ तिहुं काल परक्षेत्र व्यापि परणम्यो माने,आपा न पिछाने ऐसी मिथ्याग दोर है। जैनमती कहे जीव सत्ता परमाण ज्ञान, ज्ञेयसों अव्यापक जगत सिरमोर है । ज्ञानके प्रभामें प्रतिबिंबित अनेक ज्ञेय, यद्यपि तथापि थिति न्यारीन्यारी ठोर है॥१९॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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