SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय REPRESSAGARRIERRESERICE%ARORE ॥ अव वस्तु स्वरूप कथन दृष्टांतते दृढकरत है ॥ सवैया २३ सा - ज्यों चिरकाल गडी वसुधा महि, भूरि महानिधि अंतर गूझी ॥ कोउ उखारि धरे महि ऊपरि, जे दृगवंत तिने सब सूझी ॥ सों यह आतमकी अनुभूति, पडी जडभाव अनादि अरूझी ॥ नै जुगतागम साधि कहीगुरु, लछन वेदि विचक्षण बूझी ॥३१॥ अर्थ-जैसे कोई महा निधि ( धन ) धरतीमें, बहुत कालसे दबी रही होय । तिस धनको कोऊ हूँ * पुरुष धरतीमेंसे उखारि भूमिपर धरदे, तब नेत्रवान् मनुष्यको सो धन सब दीखे है । तैसे या आत्माके , ॐ अनुभव है सो, अनादि कालते शरीरादिक तथा रागादिक भाव मलमें दब रहा है । तिस अनुभवको ज्ञानीगुरु सिद्धांत ( व्यवहार अर निश्चय दोय नय) ते साधी, आत्मस्वरूपको लक्षण कहे है तब विचक्षण (चतुर) मनुष्य तिस अनुभवको जाणिलेय है तथा ग्रहण करे है ॥ ३१ ॥ ॥ अव भेदज्ञानको स्वरूप कथन धोवीको दृष्टांत ॥ सवैया ३१ सा ॥है जैसे कोउ जनगयो धोबीके सदन तिन, पहन्यो परायो वस्त्र मेरोमानि रह्यो है ॥ र धनी देखि कह्यो भैय्या यहुतो हमारोवस्त्र, चिन्ह पहचानतही त्याग भाव लह्यो है ॥ तैसेही अनादि पुदगलसों संजोगी जीव, संगके ममत्वसों विभावतामें वह्यो है ॥ भेदज्ञान भयो जब आपोपर जान्योतब, न्यारो परभावसों खभाव निज गयो है ॥ ३२ ॥ अर्थ-कैसा है भेदज्ञान ? जैसे कोऊ मनुष्य धोबीके घरजाय, दुसरेको वस्त्र आपनो मानि भूलमें है लेयके पहयो अर मनमें आपनो वस्त्र मानी रह्योहै । नंतर खरो मालक जब मिले अर वस्त्रको देखकर AGRICROGREHRESGRESCRISERECTOGRESORESTEGRESS ॥१९॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy