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________________ समय शोभे है, मानो वो नगरने स्वर्गलोकके गिलिवेको दांत उंचे कीये है. भावार्थ--कोट अति उंचा है। द अर वे नगरके चारो तरफ वागवगीचे ऐसे सघन है, मानो घेरादेय नरलोकको घेरलिया है. भावार्थ॥१८॥ बागबगीचे बहूत है । अर वे नगरके चारो तरफ गहरी ( उंडी ) गंभीर खाई है ताकी ऐसी उपमा बनी है, मानो ये नगर आपना मुखवू नीचाकरि पातालका जल पीवे है. भावार्थ-खाई अति जलसे भरी उंडी है। ऐसे नगरको बहूत उपमा देके वर्णन कीयो तथापि इसिमें राजाके अंगका कोऊ लेशहूं नहीं नगरते राजा भिन्न है, तैसेही शरीरते आत्मा भिन्न है शरीरके वर्णनमें आत्माका वर्णन नहि आवे है ॥२८॥ ॥ अव तीर्थकरकी निश्चै गुण स्वरूप स्तुति कथन ॥ सवैया ३१ सा ॥जामें लोकालोककें स्वभाव प्रतिभासे सब, जगी ज्ञान शकति विमल जैसी आरसी॥ दर्शन उद्योत लियो अंतराय अंत कियो, गयो महा मोह भयो परम महा ऋषी॥ संन्यासी सहज जोगी जोगसूं उदासी जामें, प्रकृति पच्यासी लगरही जरि छारसी॥ सोहे घट मंदिरमें चेतन प्रगटरूप, ऐसो जिनराज तांहि वंदत वनारसी ॥ २९ ॥ अर्थ-अब तीर्थकरके अनंत चतुष्टय (अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ती, अनंत सौख्य,) 15 गुणस्वरूपकी स्तुति वर्णन करे है-जिसके ज्ञानावरण कर्मका क्षय होनेसे अनंत ज्ञान प्राप्त भया है। तिस ज्ञानके शक्तीसे, लोक अर अलोकवर्ती समस्त पदार्थ (पद्रव्य) तथा पद्रव्यके तीनकालमेंके। स्वभाव प्रत्यक्ष प्रतिबिंबित होय है जैसे निर्मल दर्पणमें वस्तु प्रतिभासे तैसे । अर जिसके दर्शनावरण कर्मका क्षय होनेसे अनंत दर्शन प्रगट भया है तिस अनंत दर्शनमें त्रैलोक्य दीखे है अर जिसके अंतरायकर्म क्षय होनेसे अनंत वल प्रगट भया ताते अनंत धैर्य धारे है, अर जिसके महा मोहका क्षय ॥१८॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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