SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्माके अनुभवमें सदा साचे है अर साची ईश्वरता है । अपने आत्मघरकी खबरदार अर आत्मारामके साथ क्रीडा करनहारी है, अध्यात्म पंथके ग्रंथमें इस सुबुद्धीकी बढाई गाई है । सुबुद्धीकू संत जनोंने मानी हैं अर क्षोभ रहित स्थानमें रहणारी है तथा शोभाकी निशाणी है, ऐसे सुबुद्धीके गुण है। है ताते तिसकू राधिका राणी कहाई है ॥ ७४ ॥ वह कुजा वह राधिका, दोउ गति मति मान।वह अधिकारी कर्मकी, वह विवेककी खान ॥७॥ अर्थ-दुर्मति कुजा है अर सुमती राधिका है, सो अप अपने गतीळू अर मतीनूं भिन्न भिन्न धारे है। दुर्मति कर्म बधावने• अधिकारी है, अर सुमती विवेक बधावनेकू खानी है ॥ ७५ ॥ . ॥ अव कर्मचक्र अर विवेक चक्रका स्वरूप कहे है ॥ दोहा - कर्मचक्र पुद्गल दशा, भावकर्म मतिवक्र । जो सुज्ञानको परिणमन, सो विवेक गुणचक्र ॥७॥ Hall अर्थ-ज्ञानावरणादिक पुद्गल कर्म है ते द्रव्यकर्म चक्र है, अर रागादिक बुद्धीकी वक्रता है ते भावकर्म चक्र है । अर सम्यग्ज्ञानका परिणमने है, ते विवेक गुणचक्र है ॥ ७६ ॥ ॥अव कर्मचक्रके स्वभाव ऊपर चोपटका दृष्टांत कहे हैं ॥ कवित्त ॥ जैसे नर खिलार चोपरिको, लाभ विचारि करे चितचाव ॥ ... धरे सवारि सारि बुधि बलसों, पासा जो कुछ परेसु दाव ॥ तैसे जगत जीव खारथको, करि करि उद्यमचिंतवे उपाव ॥ . लिख्यो ललाट होइ सोई फल, कर्म चक्रको यही खभाव ॥७७॥ .. अर्थ-जैसे चोपटको खेलनारो कोई मनुष्य होय सो, लाभ समझ खेल खेलनेनं चित्तमें हौसा *CHORUSKOSLO HIGHSX**** CLIGIGASES * RERURUSK PRESSURSE SASUSAS
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy