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________________ समय- ॥९७॥ RECERESERVEERERS-RE-RRIAGREATREER तिसका फल भोगवै दूसरा ऐसे नाना प्रकारके विकल्प है सो सब नय प्रमाणते सत्य है। परंतु आत्म सार. अनुभवमें विकल्पके प्रकार त्यागने योग्य है, अर निर्विकल्प रहना है सो अमृत पान है ॥४७॥ अ० १० ॥अब स्याद्वादी आत्माकू कर्ता कौन नयमे माने है मो कहे है ॥ दोहा।।द्रव्यकर्म कर्ता अलख, यह व्यवहार कहाव । निश्चे जो जेमा दरव, तेसो ताको भाव ॥१८॥ अर्थ-पुद्गलकर्मका कर्ता आत्मा है यह व्यवहारनयते कया है । अर निभय नयते जो जैसा ! द्रव्य है तैसा तिसका स्वभाव है [ पुलकर्मळू पुद्गल करे अर भाव कर्मळू चेतन करे है ] ॥ १८ ॥ ॥ अव ज्ञानका अर ज्ञेयका स्वरूप कहे है ।। मबया ३१ मा ||ज्ञानको सहज ज्ञेयाकार रूप परिणमे, यद्यपि तथापि ज्ञान ज्ञानरूप कहो है॥ ज्ञेय ज्ञेयरूपसों अनादिहीकी मरयाद, काहू वस्तु काहको स्वभाव नहि गह्यो है॥ एतेपरि कोउ मिथ्यामति कहे ज्ञेयाकार, प्रतिभासनिसों ज्ञान अशुद्ध व्हे रह्यो है॥ याहि दुरवुद्धीसों विकलभयो डोलत है, समुझे न धरम यों भर्म मांहि वह्यो है ॥ १९॥ ___ अर्थ-यद्यपि ज्ञानका स्वभाव क्षेय ( घटपटादि पदार्थ ) के आकाररूप परिणमनेका है, तथापि है ज्ञान है सो ज्ञानरूपही रहे ज्ञेयरूप नहि होय ऐसा शास्त्रमें कया है । अर ज्ञेय है सो ज्ञेयरूप रहे। ज्ञानरूप कदापि नहि होय, कोई एक वस्तु अन्य दुसरे वस्तुका स्वभाव नहि धारण करे ऐसे अनादि8 कालकी मर्याद है । तोभी कोई मिथ्यामती कहे की जबतक ज्ञानमें ज्ञेयको आकार प्रति भासे है, तबतक ॥१७॥ ज्ञान अशुद्ध होय रहे है। [ जब अशुद्धी मिटेगी तब आत्मा मुक्त होयगा ] इसही दुर्बुद्दीसे मिथ्यात्वीमोहकसे विकल होय डोले है, अर वस्तुके स्वभावको नहि समझे ताते भ्रममें फिरे है ॥ ४९ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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