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________________ समय ॥९५॥ है । जैसे भिन्न भिन्न' मोती है, पण तिस मोतीकूं सूतर्फे पोयेसे हार कहावे है ॥ ३९ ॥ जैसे सूत पोये विना मोतीकी माल नहि होय है । तैसे स्याद्वादी बिना कोई मोक्षमार्ग साधे नहीं है ॥ ४० ॥ | अब मत भेदको कारण कहे है ॥ दोहा ॥ ४१ ॥ पद स्वभाव पूर्व उदै, निचै उद्यम काल । पक्षपात मिथ्यात पथ, सर्वंगी शिव चाल ॥ अर्थ — कोई तो आत्माके स्वभावकूं माने है ॥ ३ ॥ कोई पूर्व कर्मके उदयकूं माने है ॥ २ ॥ कोई निश्चयकूं माने है ॥ ३ ॥ कोई व्यवहारकूं माने है ॥ ४ ॥ कोई कालकूं माने है ॥ ५ ॥ ऐसे पक्षपात करि एक एककूं माने है सो तो मिध्यात्वका मार्ग है, अर जो पांचीहूं मोक्षका मार्ग है ॥ ११ ॥ नयकूं माने है सो ॥ अव छहों मतका विचार कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ एक जीव वस्तु अनेक गुण रूप नाम, निज योग शुद्ध पर योगसों अशुद्ध है | वेदपाठी ब्रह्म कहे . मीमांसक कर्म कहे, शिवमति शिव कहे बोध कहे बुद्ध है ॥ जैनी कहे जिन न्यायवादी करतार कहे, छहीं दरसनमें वचनको विरुद्ध है ॥ वस्तुको स्वरूप पहिचाने सोई परवीण, वचनके भेद भेद माने सोई शुद्ध है ||४२॥ अर्थ-जीव वस्तु एक है पण तिसके गुण रूप अर नाम अनेक है, जीव स्वतः शुद्ध है पण परके संयोगते अशुद्ध होय है । वेदपाठी जीवकूं ब्रह्म कहें है अर मीमासकमती जीवकूं कर्म कहे है, शिवमती जीवकूं शिव कहे है अर बौद्धमती जीवकूं बुद्ध कहे है । जैनमती जीवकूं जिन कहे है अर न्यायवादी जीवकूं कर्त्ता कहे है, ऐसे छह दर्शन ( मत ) में वचनके भेदते मात्र विरुद्ध दीसे है । सार अ० १० ॥९५॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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