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________________ समय॥४॥ RESEARLICENSATAKAREE GANGANAGRICROGRAM कोपको कृपान लिये मान मद पान कीये, मायाकी मयोर हिये लोभकी लहर है। सार याहि भांति चेतन अचेतनकी संगतीसों, सांचसों विमुख भयो झूठमें वहर है ॥२७॥ अर्थ-भूमी पर्वतते सुवर्णादिक धातु पैदा होय है तिस सुवर्णादिककू आपनी संपदा कहे, देहा६ दिकके क्रियाते सिद्धि माने है अर ज्ञानकू जहर जाने है । आत्मस्वरूपकुं तो ग्रहे नही अर देहा- 15 6 दिककू आपना कहे, सुखकू समाधि अर दुःखळू उपाधि समझे । सदा कोपरूप खड्ग लेय रहे है अर में अहंकाररूप मद्य पान करे है, तथा हृदयमें कपटकी अर लोभकी लहर उठे है। ऐसे अचेतनकी | * संगतीसे चेतन है सो, सांचते परान्मुख होय झूठके बहरमें तत्पर हो रह्या है ॥ २७ ॥ पुनः ॥ तीन काल अतीत अनागत वरतमान, जगमें अखंडित प्रवाहको डहर है॥ तासों कहे यह मेरो दिन यह मेरी घरि, यह मेरोही परोई मेरोही पहर है ।। खेहको खजानो जोरे तासों कहे मेरा गेह, जहां वसे तासों कहे मेराही सहर है। याहि भांति चेतन अचेतनको संगतीसों, सांचसों विमुख भयो झूठमें वहर है ॥ २८॥ है अर्थ-जगतमें भूत भविष्य अर वर्तमान ऐसे तीन कालका परिवर्तन सदा हो रहा है। तिसत है कहे यह मेरा दिन यह मेरी घडी है, अर यह मेरे बहरका पहर है । मट्टीका फत्तरका अर लकडीका ढिगला करे अर तासो कहे यह मेरा घर महेल है, जिस गांवमें रहे तिसकू कहे यह मेरा सहेर है। ॐ ऐसे अचेतनकी संगतीसे चेतन है सो, साचते परान्मुख होय झूठके बहरमें तत्पर हो रह्या है ॥२८॥8॥४॥ । ॥ अव सम्यकदृष्टी साहुकारका विचार कहे है ॥ दोहा ॥जिन्हके मिथ्यामति नही, ज्ञानकला घट मांहि। परचे आतम रामसों, ते अपराधी नाहि ॥२९॥ ex17******%E9%ARA
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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