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________________ ॐ समय ॥८॥ कोउ कहे चेतना चिहन नांही आतमामें, चेतनाके नाश होत त्रिविधि विकार है॥ ६ लक्षणको नाश सत्ता नाश मूल वस्तु नाश, ताते जीव दरवको चेतना आधार है ॥९॥ हैं । अर्थ-आत्माका चेतना गुण है तिस चेतानाके दोय भेद है एक दर्शन चेतना अर एक ज्ञान चेतना तिसमें दर्शन चेतना निराकार है, अर ज्ञान चेतना साकार है। ऐसे चेतनाके दोय भेद है पण आत्म , १ द्रव्यमें एकरूप रहे है, दर्शन सामान्य चेतना है अर ज्ञान विशेष चेतना है ऐसे सामान्य विशेषतें दोय. भेद दीखे है पण एक आत्मसत्ताका विस्तार है। कोई मतवाले कहे की आत्मामें चेतना लक्षण नही है, 12 ६ परंतु ऐसे लक्षणका अभाव कहनेसे तीन दोष ( मन, वचन, अर देहके विकार, ) उपजे है। एकतो, * लक्षणका नाश माननेसे सत्ताका नाश होय अर सत्ताका नाश होते मूल वस्तुका नाश होय, ताते हूँ जीवद्रव्यके जाननेवू चेतना येक आधार है ॥ ९ ॥ दोहा ॥है चेतना लक्षण आतमा, आतम सत्ता मांहि । सत्ता परिमित वस्तु है, भेद तिहूमें नाहि ॥१०॥ है अर्थ-आत्माका चेतना लक्षण है, सो आत्माके सत्ता है । अर सत्तायुक्त आत्म वस्तु है, पण है द्रव्य अपेक्षाते देखिये तो तीनूमें भेद नहीं है एकरूप है ॥ १०॥ ॥ अव आत्माके चेतना लक्षणका शाश्वतपणा दिखावे है ॥ सवैया २३ सा ॥ज्यों कलधौत सुनारकि संगति, भूषण नाम कहे सब कोई ॥ कंचनता न मिटी तिहि हेतु, वहे फिरि औटिके कंचन होई ॥ - यों यहजीव अजीव संयोग, भयो बहुरूप हुवो नहि दोई ॥ . . चेतनता न गई कबहूं तिहि, कारण ब्रह्म कहावत सोई ॥ ११॥ 19GGREGISCOURSCRIGRICA-REGA ॥८॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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