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प्रस्तावना.
इस ग्रंथकी दिगंबरी बनारसीदासने शुद्ध हिंदुस्थानी भाषामें पद्यात्मक रचना करी है. ए ग्रंथकर्त्ता महापंडित तथा कवीश्वर होनेसे विविध प्रकारकी छंद रचना करिके आपकी श्रेष्ठ कृति दिखाय दिई है. पदलालित्यता तथा अर्थ गौरवतादिक जे काव्यके उत्तम गुण है, ते सब इस ग्रंथ में दीखने में आवे है . अलंकारसे कविता अच्छि भूषित करी है. यह ग्रंथ आध्यात्मिक ( शुद्ध आत्मतत्त्व के ) विषयका है ताते इसीमें शांत रसही मुख्यपणे है तोभि प्रसंगानुसारे बाकीके ( ८ ) रसपण दीखने में आवे है. ऐसा यह ग्रंथ सबके उपयोगी है सो जान, इस कविता ऊपर हमने हिंदी वचनिका लिखके मुंबई में 'निर्णयसागर' यंत्रालयमें छपायके प्रसिद्ध करी है. मेरी मातृभाषा महाराष्ट्रीय है तातै इसिमें कुछ भूल होने का संभव है सो ज्ञानी जनों ने हंसस्वभाव लेयके मुजकूं लिख भेजना तिसकूं पुनरावृत्तिमें दुरुस्त करेंगे. इस ग्रंथकी श्लोकसंख्या अंदाज सात ७ हजार है. सब काम चालीस ४० फार्म में पूरा हुवा है. किंमत अढाई ( २॥ ) रुपये, अलग डाक खर्च लगेगा.
पुस्तक मिलने का पता — नाना रामचंद्र नाग. मु० कुंभोज, जि० कोल्हापूर.
श्रीवीरनिर्वाणसंवत् २४४० सन १९१४. शके १८३६. ज्येष्ठ शुद्ध ५ भौमवार.
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