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________________ उदै बल उद्यम गहै पै फलको न चहै, निरदै दशा न होइ हिरदेके नैनमें ॥ आलस निरुद्यमकी भूमिका मिथ्यांत मांहि, जहां न संभारे जीव मोह निंद सैनमें ॥५॥ अर्थ-यद्यपि ज्ञानी है सो-कर्मजाल योग हिंसा अर विषय भोगसे कर्मबंधकू नही बंधे है, तथापि ज्ञानीकू उद्यम ( पुरषार्थ.) करनेकू जैन शास्त्रमें कह्या है । ज्ञानमें तत्परता अर विषयभोगमें इच्छा इन दोनूं बातोंकातो विरोध है, सो ये दोन क्रिया एक स्थानमें नहि होय । ज्ञानी है सो शरीराहादिकके शक्तिप्रमाण अर अपने पदस्थके योग्य पुरषार्थ (क्रिया) करे है परंतु तिस क्रियाके फल• नहि चाहे, हृदयमें सदा दया परिणाम राखे है। आलस अर निरुद्यमीका स्थानतो मिथ्यात्व है, मिथ्यात्वीजीव मोहरूप नींदमें शयन करे है सो आत्मस्वरूपळू नहि जाने है ॥ ५॥ ॥ अव कर्म उदयके वलका वर्णन कहे है ॥ दोहा॥जब जाकों जैसे उदै, तब सो है तिहि थान । शक्ति मरोरी जीवकी, उदै महा बलवान ॥६॥ अर्थ-जब जिस जीवकों जैसे कर्मका उदय आवे है, तब सो जीव तिस उदय माफक प्रवर्ते है कर्मका उदय जीवके शक्ती• मोडिके आपरूप करे है, ऐसा कर्मका उदय बडा बलवान है ॥ ६ ॥ ॥ अव हाथीका अर मच्छका दृष्टांत देके कर्मका उदैवल कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जैसे गजराज पन्यो कर्दमके कुंडबीच, उद्दिम अरूढे पै न छूटे दुःख दंदसों ॥ जैसे लोह कंटककी कोरसों रग्य्यो मीन, चेतन असाता लहे साता लहे संदसों। जैसे महाताप सिरवाहिसोगरासोनर, तके निज काज उठिशके न सुछंदसों॥ तैसे ज्ञानवंत सब जाने न बसाय कछु, वंध्यो फिरे पूरव करम फल फंदसों ॥७॥ SAHARASSUSREISESEISEGUIRIERIGURO
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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