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________________ - S समय॥६१॥ ECOREOGRESSIOCOMSECREEPEECREENER पंच अकथ परदोष, थिरी करण छट्ठम सहज । सप्तम वत्सल पोष, अष्टम अंग प्रभावना ॥ ५८॥ अर्थ-निःसंशय अंग ॥१॥ निःकांक्षित अंग ॥२॥ निर्विचिकित्सित अंग ॥३॥ अमूढदृष्टि अंग ॥ent उपगृहन अंग ॥ ५॥ स्थितीकरण अंग ॥६॥ वात्सल्य अंग ॥७॥ प्रभावना अंग ॥ ८॥ ५७ ॥ ५८॥ ॥ अव सम्यक्तके अष्ट अंगका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥धर्ममें न संशै शुभकर्म फलकी न इच्छा, अशुभकों देखि न गिलानि आणे चित्तमें ॥ साचि दृष्टि राखे काहू प्राणीको न दोषभाखे, चंचलता भानि थीति ठाणेबोध वित्तमें। प्यार निज रूपसों उच्छाहकी तरंग ऊठे, एइ आठो अंग जब जागे समकितमें ॥ है ताहि समकितकों धरे सो समकीत वंत, वेहि मोक्ष पावे वो न आवे फीर इतमें ॥५९॥ है अर्थ-धर्ममें संदेह न करना सो निःशंकित अंग है ॥ १ ॥ शुभक्रिया करिके तिसके फलकी है इच्छा नहि करना सो निःकांक्षित अंग है ॥ २ ॥ अशुभवस्तु देखि अपने चित्तमें ग्लानि नहि करना सो निर्विचिकित्सित अंग है ॥ ३ ॥ मूढपणा त्यागि सत्य तत्वमें प्रीति रखना सो अमूढदृष्टी अंग है 8 ॥ ४॥ धार्मिकके दोष प्रसिद्ध न करना सो उपगृहून अंग है ॥ ५॥ चंचलता त्यागि ज्ञानमें स्थिरता हूँ हैं रखना सो स्थितिकरण अंग है ॥ ६ ॥ धार्मिक ऊपर तथा आत्मस्वरूपमें प्रेम रखना सो वात्सल्य * अंग है ॥ ७ ॥ ज्ञानकी प्रसिद्धीम तथा आत्मस्वरूपके साधनमें उत्साहका तरंग ऊठना सो प्रभावना है अंग है ॥८॥ ये आठ अंग जब सम्यक्तमें जाग्रत होय है तब ताको सम्यक्ती कहिये है। तिस सम्यक्तकू धरनहारो सम्यक्तवंतही मोक्षकू जावे है, सो फेर जगमें नहि आवे है ॥ ५९॥ UGARCISRO HEROSAR ॥६१॥ REGROR
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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