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________________ समय ॥३०॥ है । . . ॥ अव बंध होनेका कारण वाह्य दृष्टि है सो कहे है ॥ सोरठा ॥₹ कर्म-शुभाशुभ दोय, पुद्गलपिंड विभाव मल । इनसों मुक्ति न होय, नांही केवल पाइये॥११॥ है अर्थ-शुभकर्म अर अशुभकर्म ये दोऊ कर्म है ते द्रव्यकर्म है, अर राग द्वेषादिक है ते भावकर्म है। द्रव्यकर्म अर भावकर्म जबतक है तबतक आत्माकू मुक्ति नही होय अर केवलज्ञान प्राप्त होय नहीं ॥११॥ ॥ अब ये बात ऊपर शिष्य प्रश्न करे अर गुरु उत्तर कहे है ॥ सवैया ३१ सा - र कोउ शिष्य कहे स्वामी अशुभक्रिया अशुद्ध, शुभक्रिया शुद्ध तुम ऐसी क्यों न वरनी॥ * गुरु कहे जबलों क्रियाके परिणाम रहे, तबलों चपल उपयोग जोग धरनी ॥ * थिरता न आवे तौलों शुद्ध अनुभौ न होय, याते दोउ क्रिया मोक्ष पंथकी कतरनी ॥ * बंधकी कैरया दोउ दुहूमें न भली कोउ, बाधक विचारमें निषिद्ध कीनी करनी ॥ १२॥ अर्थ--कोऊ शिष्य गुरूकू पूछे हे स्वामी ? आप-हिंसादिक पापकू अशुभ.क्रिया कहीं सो तिसकूँ * 8 अशुद्ध क्रिया क्यों न कही, अर दयादिक पुन्यकुं शुभ क्रिया कही सो तिसकं शुद्ध क्रिया क्यों न हूँ F कही । तब गुरु कहे है.हे शिष्य ? जबतक कियाके परिणाम रहे है, तबतक आत्माके ज्ञान अर . * दर्शन उपयोग तथा मन वचन अर कायाके योग चंचल रहे है । अर जबतक उपयोग अर योग स्थिर । नहि रहे है तबतक आत्माका शुद्ध अनुभव नहि होय है, ताते पाप अर पुन्यके क्रियाको अशुभ अर शुभ कही अशुद्ध तथा शुद्ध नहि कही ये दोनही क्रिया मोक्षमार्ग• कतरनी समान् कतरनहारी है। * अर दोनही क्रिया कर्मबंध करनहारी है ताते दोमें एकहूं भली नही है, [ जो संसारमें कर्मबंध 8 PRIORRECOREIGREATRESPONSOREIGNESIRESCORE ॥३०॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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