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________________ समय ॥३६॥ अ०४ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॥ अब शिष्य पापपुन्यके कारण, रस, स्वभाव, अर फल, जुदे जुदे कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥संकलेश परिणामनिसों पाप बंध होय, विशुद्धसों पुन्य बंध हेतु भेद मानिये ॥ पापके उदै असाता ताको है कटुक खाद, पुन्य उदै साता मिष्ट रस भेद जानिये ॥ पाप संकलेश रूप पुन्य है विशुद्ध रूप, दुहुंको खभाव भिन्न भेद यों वखानिये ॥ पापसों कुगति होय पुन्यसों सुगति होय, ऐसो फल भेद परतक्ष परमानिये ॥५॥ अर्थ-संक्लेश ( तीव्र कषाय ) के परिणामते पापबंध होय है, अर विशुद्ध ( मंद कषाय ) के है । परिणामते पुन्यबंध होय है ऐसे पापका कारण (हेतू ) जुदा है तथा पुन्यका कारण भी जुदा है । पापका 5 उदय होते असाता उत्पन्न होय तिसका रस कटुक (दुःख ) होय है, अर पुन्यका उदय होते साता उत्पन्न होय तिसका रस मिष्ट ( सुख ) होय है ऐसे पापका रस जूदा है तथा पुन्यका रसभी जुदा है। - पापका स्वभाव तीव्र कषाय है अर पुण्यका स्वभाव मंद कषाय है, ऐसे पाप अर पुन्यका स्वभाव जुदा है । जुदा है । पापते नरकपश्वादि कुगतीमें जन्म होय है अर पुन्यते स्वर्गमनुष्यादि सुगतीमें जन्म होय है, 5 ऐसे पापकर्मका तथा पुन्यकर्मका फलभी जुदा जुदा है इस प्रकार कारण, रस, स्वभाव अर फल ये 2 च्यार भेद पापं पुन्यमें प्रत्यक्ष प्रमाण जुदे जुदे दीखे है सो एक कैसा होय ? ॥ ५॥ . - ॥ अव शिष्यके प्रश्नकू गुरु उत्तर कहे है पापपुन्य एकत्व करण ॥ सवैया ३१॥पाप बंध पुन्य बंध दुहूमें मुकति नाहि, कटुक मधुर खाद पुद्गलको. पेखिये ॥ संकलेश विशुद्धि सहज दोउ कर्मचाल, 'कुगति सुगति जग जालमें विसेखिये ॥ ॐ RSSRASHANGAROSCRkR-992-9 RECEIRESORRE ॥३६॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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