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________________ समय ॥१४॥ U ॥ अव पंच महा व्रत, पंच सुमति अर छह आवश्यक इनका स्वरूप कहे है॥ दोहा ॥ ६ सार. % हिंसामृषाअदत्त धन, मैथुन परिग्रह साज । किंचित त्यागी अणुव्रती, सब त्यागी मुनिराज॥०॥ अ० १३ * चले निरखि भाखे उचित, भखेअदोष अहार।लेइ निरखि डारे निरखि, सुमति पंच परकार॥८॥ है समता वंदन स्तुति करन, पडकोनोखाध्याय। काउसर्ग मुद्रा धरन, ए पडावश्यक भाय ॥२॥ है अर्थ-हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, अर परिग्रह संचय करना, यह पांच पाप है। इनका किंचित् ॐ से त्याग करे सो अणुव्रती श्रावक है अर सर्वस्वी त्याग करे सो महाव्रती मुनिराज है ॥ ८०॥ रस्ता ६ देख जीव जंतुका बचाव करि चाले सो इर्या सुमति है, हितरूप योग्य वचन बोले सो भाषा सुमति है, निर्दोष आहार लेय सो एषणा सुमति है, शरीर कमंडलु अर शास्त्रादिक पिछीसे झाडकर लेय वा रखे हैं ६ सो आदान निक्षेपणा सुमिति है, अर निर्जतु स्थान देखि मल मूत्र वा श्लेष्मादिक टाके सो प्रतिष्टावना , सुमिति है, ऐसे पंच प्रकारे सुमिति है ॥ ८१॥ समता धरना, चौवीस तीर्थंकरोंकों नमस्कार करना है चौवीस तीर्थकरोंकी स्तुति करना, प्रतिक्रमण (खदोषका पश्चात्ताप) करना, सिद्धांत शास्त्रका स्वाध्याय - करना, कायोत्सर्ग (शरीरका ममत्व छोडि ) ध्यान धरना, ए छह आवश्यक क्रिया है ॥ २॥ ॥ अव स्थविरकल्प अर जिनकल्प मुनीका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥थविर कलपि जिन कलपि दुवीध मुनि, दोउ वनवासि दोउ नगन रहत है ॥ दोउ अठावीस मूल गुणके धरैया दोउ, सरवखि त्यागि व्है विरागता गहत है ॥ ॥१४॥ थविर कलपि ते जिन्हके शिष्य शाखा संग, बैठिके सभामें धर्म देशना कहत है॥ एकाकी सहज जिन कलपि-तपस्वी घोर, उदैकी मरोरसों परिसह सहत है ॥ ८३॥ REAUCRACARS SUSMROSAGARESS
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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